महात्मा गांधी: देश की आत्मा गॉवो में बसती है , और गॉवों में किसान

देश की 75% आवादी ग्रामीण है और जो बाकी 25% है उनमें भी अधिकतर गॉवों से आकर बसे है हमारे मामा मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री  शिवराज सिंह चौहान को ही देख लो , देश का समुचित सर्वांगीण विकास हो भी तो कैसे जब ये जन उपेक्षित है ।

आज देश की GDP में भी खेती का हिस्सा बहुत कम है , जबकि हम पहले कृषि के कारण ही सोने की चिड़िया के नाम से विश्व मे जाने जाते थे ।
पहले सर्विस सेक्टर नही था पर आज सर्विस सेक्टर केो अति महत्व देंंने के कारण देश की कृषि को बर्बादी के स्तर पर लाकर खड़ा कर दिया ।
क्या इसमे देश की सरकार जिम्मेदार नही है ,किसान चुनावी चर्चा का विषय ही रहा है नेताओ के लिए और सदियों से लोग इनका दुरुपयोग करते रहे है ।

आज देश का इतना बड़ा जन समूह सरकार की उपेक्षा के कारण पिछड़ा हुआ है , हमारे देश मे किसानों को खत्म कर उन्हें सस्ते मजदूर बनाने की प्रकिरिया चल रही है ।

खेती की आय दिन व दिन घटती जा रही है और लागत दिन व दिन बढ़ती जा रही है यैसे में किसान अपनी रोजी रोटी चलाये भी तो कैसे और ऊपर से प्रकृति का कहर जब किसान की एक फसल नष्ट होती है तो वो दो साल पीछे पहुच जाता है और कर्ज बढ़ जाता है।

किसान अपना सारा पैसा फसल की लागत के रूप में खेतों में लगा देता है इसी आस में कई फसल अच्छी होगी किसान की फसल के बीमे की राशी भी हर साल काटती है पर जब चुकाने की बारी आती है तो दो चार हजार की एकड़ पकड़ा दिया जाता है जिसमे किसान की मेहनत तो दूर लागत भी नही निकलती।

किसान बीमे का प्रीमियम का आधा भाग भी किसानों को नही दिया जाता , जिससे बीमा कंपनीया तो बहुत फायदे में है और किसान तंगहाली का जीवन व्यतीत करता है , इसी तंगहाली के चलते आत्महत्या जैसे कदम उठा लेते है।

क्या सरकार को देश की 75 % आवादी के लिए एक किसान आयोग नही बनान चाहिए , लागत और उत्पादन के अंतर के साथ साथ किसान के मेहनताने का अनुमान नही लगाना चाहिए ।

क्या सरकार ने आज तक ये सोचा कि जो किसान अपनी फसल उत्पादन के लिए मेहनत करता है उस मेहनत की कीमत क्या है ।

वास्तविकता यही है कि आज किसान की हालत मजदूर से भी बदतर है, मजदूर तो अपनी मेहनत का पैसा ले लेता है ,पर किसान किसके पास जाए ।

जब किसान की फसल नही होती तब उसपे क्या बितती है ये किसान ही जनता है।

एक किसान आत्मसम्मानी होता है ,दूसरों के यहां काम नही करता भले ही अपनी खेती में सब गिरबी रख देता है , अपने खेत के लिए अपना तन मन धन सब लगा देता है और उसकी कीमत भी नही निकल पाती।

आज किसान अपने बच्चो को पढ़ाने लिखाने का खर्चा उठाने में भी असमर्थ है , अधिकतर किसान अपने बच्चो को कर्ज लेकर पढ़ा तो लेता है इसी आस में कई बच्चों को तंगहाली में नही जीना पड़ेगा पर बेरोजगारी की मार झेलते है ।

किसान दुनिया मे सबसे ज्यादा आशवादी इंसान होता है,किसान भगवान के अलावा आज सरकार से आशा रखता हैै की उसे उसकी फसल का न्ययोचित भाव मिले,किसान अपने उत्पाद का व्यापारियों की तरह भाव तय कर सके ।

हर गॉव में सरकार कृषि केंद्र खोले जिससे किसान को जिला केंद्रों में भटकना न पड़े व कृषि तकनीकी ज्ञान प्राप्त हो जिससे वो काम लागत में अधिक उत्पादन कर सके ।

सरकार को एक उचित किसान नीति बनाने की आवस्यकता है जिसे जमीनी स्तर पर लागू करें।

आज देश का किसान देश की सरकार से आशा लगाए हुए है सरकार को निराश नही करना चाहिए , किसान चुनावी मुद्दे से बाहर आना चाहिए जो कभी पूरे नही होते ।

किसान को कृषि छोड़ने पर मजबूर न होना पड़े क्योंकि देश मे जहां आज अन्न की कमी है कल लाले पड़ जाएंगे , विदेशो से मंगवाए अन्न से देश का पेट कैसे भरेगा ।

देश की जो सामान्य जनता किसानों को उनकी हड़ताल की बजह से बुरी नजरों से देख रही है उन्हें इस बात पर भी विचार करना चाहिए कि जो हमे अन्न दे रहा है वो खुद अपना जीवन निर्वाह नही कर पा रहा है । किसान खेती बाड़ी छोड़ देगा तो आप के घर भोजन गेंहू आंटा, दाल , सब्जी, दूध कैसे आएगा ।

अगर सभी किसान मजदूर बन जाये तो भोजन सामग्री भी विदेशो से बुलानी पड़ेगी जो किसी न किसी ब्रांड की होगी, और हम जानते है विदेशो का सामान कितना महंगा होता है सारा देश भुखमरी की कगार पे पहुच जाएगा।

किसानों का सभी समर्थन कीजिये , जरा सोचिए कृषि , किसान के हित मे।

जय जवान ,जय किसान ,जय विज्ञान

लेखक:नवल पटेल

 

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.