धान की उन्नत खेती

परिचय:

धान, भारत समेत कई एशियाई देशों की मुख्य खाद्य फसल है। इतना ही नहीं दुनिया में मक्का के बाद जो फसल सबसे ज्यादा बोई और उगाई जाती है वो धान ही है। करोड़ों किसान धान की खेती करते हैं। खरीफ सीजन की मुख्य फसल धान लगभग पूरे भारत में लगाई जाती है। अगर कुछ बातों का शुरु से ही ध्यान रखा जाए तो धान की फसल ज्यादा मुनाफा देगी। धान की खेती की शुरुआत नर्सरी से होती है, इसलिए बीजों का अच्छा होना जरुरी है। कई बार किसान महंगा बीज-खाद तो लगाता है, लेकिन सही उपज नहीं मिल पाती है, इसलिए बुवाई से पहले बीज व खेत का उपचार कर लेना चाहिए। बीज महंगा होना जरुरी नहीं है बल्कि विश्वसनीय और आपके क्षेत्र की जलवायु और मिट्टी के मुताबिक होना चाहिए। भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद के कृषि वैज्ञानिक डॉ. पी. रघुवीर राव बताते हैं, “देश के अलग-अलग राज्यों में धान की खेती होती है और जगह मौसम भी अलग होता है, हर जगह के हिसाब से धान की किस्में विकसित की जाती हैं, इसलिए किसानों को अपने प्रदेश के हिसाब से विकसित किस्मों की ही खेती करनी चाहिए।”

खेत की तैयारी:
ग्रीष्मकालीन जुताई करके दो से तीन बार कल्टीवेटर से जुताई करें एवं ढेलों को फोड़कर समतल करें एवं खेत में छोटी-छोटी पारे डालकर खेत तैयार करें।

उपयुक्त भूमि का प्रकार- मध्यम काली मिट्टी एवं दोमट मिट्टी।

उपयुक्त किस्में:
धान की बीज की मात्रा बुवाई की पध्दति के अनुसार अलग-अलग रखी जाती है। जैसे छिटकवां विधि से बोने के लिये 40-48 ,कतार मे बीज बोने के लिये 36-40, लेही पध्दति में 28-32 किलो, रोपाई पध्दति में 12-16 किलों तथा बियासी पध्दति में 48-60 किलो प्रति एकड़ उपयोग में लाया जाता है।
क्र. प्रजाति अनुसंशित
वर्ष
अवधि (दिन) उपज
(क्वि./हे.)
विशेषताएँ उपयुक्त क्षेत्र
अतिशीघ्र पकने वाली प्रजातियाँ
1 सहभागी 2011 90-95 30-40 छोटा पौधा, मध्यम पतला दाना असिंचित क्षेत्रों में बधांन रहित समतल व हल्के ढलान वाले खेतों के लिए व बिना बंधान वाले समतल बहुत हल्की भूमि वाले छोटे मेढ़ युक्त खेत कम वर्षा वाले क्षेत्र तथा देरी की बोवाई।
2 दन्तेश्वरी  2001 90-95 40-50 छोटा पौधा, मध्यम आकार का दाना असिंचित क्षेत्रों में बधांन रहित समतल व हल्के ढलान वाले खेतों के लिए व बिना बंधान वाले समतल बहुत हल्की भूमि वाले छोटे मेढ़ युक्त खेत कम वर्षा वाले क्षेत्र तथा देरी की बोवाई।
मध्यम अवधि में पकने वाली प्रजातिया
क्र. प्रजाति अनुसंशित
वर्ष
अवधि (दिन) उपज
(क्वि./हे.)
विशेषताएँ
1 पूसा -1460   2010 120-125 50-55 छोटा पतला दाना, छोटा पौधा
2 डब्लू.जी.एल -32100 2007 125-130 55-60 छोटा पतला दाना, छोटा पौधा
3 पूसा सुगंध 4 2002 120-125 40-45 लम्बा, पतला व सुगंधित दाना
4 पूसा सुगंध 3 2001 120-125 40-45 लम्बा, पतला व सुगंधित दाना
5 एम.टी.यू-1010 2000 110-115 50-55 पतला दाना, छोटा पौधा
6 आई.आर.64 1991 125-130 50-55 लम्बा पतला दाना, छोटा पौधा
7 आई.आर.36 1982 120-125 45-50 लम्बा पतला दाना, छोटा पौधा
विभिन्न क्षेत्रों के लिये संकर प्रजातिया एंव उनकी विशेषताएँ –
क्र. प्रजाति अनुसंशित
वर्ष
पकने की अवधि
(दिन)
औसत उपज
(क्वि./हे.)
1 जे.आर.एच.-5 2008 100.105 65.70
2 जे.आर.एच.-8 2009 95.100 60.65
3 पी आर एच -10 120.125 55.60
4 नरेन्द्र संकर धान-2 125.130 55.60
5 सी.ओ.आर.एच.-2 120.125 55.60
6 Lkg;knzh 125.130 55.60

इनके अलावा प्राईवेट कम्पनियों की संकर प्रजातिया जैसे अराईज 6444, अराईज 6209,

अराईज 6129 किसानों के बीच प्रचलित है।

उपलब्ध भूमि के अनुसार उपयुक्त प्रजातियों का चयन
क्र खेतों की दिशाएँ उपयुक्त प्रजातियाँ संभावित जिले
1 बिना बंधान वाले समतल/ हल्के ढालान वाले खेत पूर्णिमा, सहभागी, दंतेष्वरी डिण्डौरी, मण्डला, सीधी, शहडोल, उमरिया
2 हल्की बंधान वाले खेत व मध्यम भूमि जे.आर.201, जे.आर.345, पूर्णिमा, दंतेष्वरी डब्लू.जी.एल -32100, आई.आर.64 रीवा, सीधी, पन्ना, शहडोल, सतना, कटनी, छतरपुर, टीकमगढ़, ग्वालियर, बालाघाट, डिण्डौरी, मण्डला, कटनी
3 हल्की बंधान वाले भारी भूमि पूर्णिमा, जे.आर.345, दंतेष्वरी जबलपुर, सिवनी, दमोह, बालाघाट, मण्डला, डिण्डौरी, सतना, नरसिंहपुर, छिदंवाड़ा
4 उँची बंधान वाले हल्की व मध्यम भूमि आई.आर.-36, एम.टी.यू-1010,दंतेष्वरी, डब्लू.जी.एल -32100 जबलपुर, सिवनी, दमोह, बालाघाट, मण्डला, डिण्डौरी, सतना, नरसिंहपुर, छिदंवाड़ा
बीज की मात्रा –
क्र. बोवाई की पद्धति बीज दर (किलो/हेक्ट.)
1 श्री पद्धति 5
2 रोपाई पद्धति 10-12
3 कतरो में बीज बोना 20-25
बीजोपचार :-
बीज को फफूंदनाशक दवा कार्बेन्डाजिम 2.5 ग्राम/किग्रा बीज या कार्बेन्डाजिम + मैन्कोजेब 3 ग्राम/किग्रा बीज या कार्बोक्सिऩ + थायरम 3 ग्राम/किग्रा बीज से उपचारित करें।
बुवाई का समय :-
वर्षा आरम्भ होते ही धान की बुवाई का कार्य आरम्भ कर देना चाहिये। जून मध्य से जुलाई प्रथम सप्ताह तक बोनी का समय सबसे उपयुक्त होता है।
बुवाई की विधियाँ:-
कतारो में बोनी: अच्छी तरह से तैयार खेत में निर्धारित बीज की मात्रा नारी हल या दुफन या सीडड्रील द्वारा 20 सें.मी. की दूरी की कतारों में बोनी करना चाहिए।
रोपा विधि:-

सामान्य तौर पर 2-3 सप्ताह के पौध रोपाई के लिये उपयुक्त होते हैं तथा एक जगह पर 2-3 पौध लगाना पर्याप्त होता है रोपाई में विलम्ब होने पर एक जगह पर 4-5 पौधे लगाना उचित होगा।

क्र. प्रजातियाँ तथा रोपाई का समय पौधो की ज्यामिती (सें.मी. सें.मी.)
1 जल्दी पकने वाली प्रजातियाँ उपयुक्त समय पर 15 * 15
2 मध्यम अवधि की प्रजातियाँ उपयुक्त समय पर 20 * 15
3 देर से पकने वाली प्रजातियाँ उपयुक्त समय पर 25 * 20

जैव उर्वरको का उपयोग:-
धान में एजोस्पिरिलियम या एजोटाबेक्टर एवं पी.एस.बी. जीवाणुओं की 5 किलो ग्राम को 50 किग्रा/हैक्टेयर सूखी सड़ी हूई गोबर की खाद में मिलाकर खेत मे मिला दें। धान के रोपित खेत में (20दिन रोपाई उपरांत) 15 किग्रा/हैक्टेयर नील हरित काई का भुरकाव 3 सेमी पानी की तह रखते हुए करें।

पौषक तत्व प्रबंधन
गोबर खाद या कम्पोस्ट:-

धान की फसल में 5 से 10 टन/हेक्टेयर तक अच्छी सडी गोबर की खाद या कम्पोस्ट का उपयोग करने से मंहगे उवैरकों के उपयोग में बचत की जा सकती है।

हरी खाद का उपयोग:-
हरी खाद के लिये सनई ढेंचा का बीज 25 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से रोपाई के एक महीना पहिले बोना चाहिये। लगभग एक महिने की खड़ी सनई की फसल को खेत में मचैआ करते समय मिला देना चाहिए।

उर्वरकों का उपयोग:-

क्र. धान की प्रजातियाँ उर्वराकों की मात्रा (किलों ग्राम/हेक्टेयर)
नत्रजन स्फुर पोटाश
1 शीघ्र पकने वाली 100 दिन से कम 40-50 20.30 15.20
2 मध्यम अवधि 110-125दिन की, 80-100 30.40 20.25
3 देर से पकने वाली 125 दिनों से अधिक, 100-120 50.60 30.40
4 संकर प्रजातियाँ 120 60 40

उपरोक्त मात्रा में प्रयोगों के परिणामों पर आधरित है किन्तु भूमि परीक्षण द्वारा उर्वरकों की मात्रा का निर्धारण वांछित उत्पादन के लिये किया जाना लाभप्रद होगा।

उर्वरकों के उपयोग का समय व तरीका:-

नत्रजन उर्वराक देने का

समय

धान के प्रजातियों के पकने की अवधि
शीध्र मध्यम देर
नत्रजन (:) उम्र (दिन) नत्रजन (:) उम्र (दिन) नत्रजन (:) उम्र (दिन)
बीजू धान में निदाई करके

या

रोपाई के 6-7 दिनों बाद

50 20 30 20-25 25 20-25
कंसे निकलते समय 25 35-40 40 45-55 40 50-60
गभोट के प्रारम्भ काल में 25 50-60 30 60-70 35 65-75

एक वर्ष के अंतर से जिंक सल्फेट 25 कि.ग्रा. प्रति हे. की दर से बुआई या रोपाई के समय प्रयोग करना चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण की रासायनिक विधि 
क्र.
शाकनाषी दवा का नाम दवा की व्यापारिक मात्रा/है. उपयोगका समय नियंत्रित खरपतवार
प्रेटीलाक्लोर 1250 मि.ली. बुआई/रोपाई के 2-3 दिन के अन्दर घास कुल के खरपतवार
2 पाइरोजोसल्फयूरॉन 200 ग्राम बुआई/रोपाई के 2-3 दिन के अन्दर चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार
3 बेनसल्फ्युरान मिथाईल . प्रेटीलाक्लोर 6: 10 कि.गा्र. बुआई/रोपाई के 2-3 दिन के अन्दर घास कुल,मौथा कुल तथा चौड़ी पत्ती
4 बिसपायरिबेक सोडियम 80 मि.ली. बुआई/रोपाई के 15-20 दिन के अन्दर घास कुल,मौथा कुल तथा चौड़ी पत्ती
5 2,4-डी 1000 मि.ली. बुआई/रोपाई के 25-35 दिन के अन्दर चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार
6 फिनॉक्साप्रॉकप पी ईथाइल 500 मि.ली. बुआई/रोपाई के 25-35 दिन के अन्दर घास कुल के खरपतवार
7 क्लोरीम्यूरॉन ईथाइल . मेटसल्फयूरॉन मिथाइल 20 ग्राम बुआई/रोपाई के 20-25 दिन के अन्दर चौड़ी पत्ती तथा मौथा कुल
रोग प्रबंधन –
धान की प्रमुख गौण बीमारीयों के नाम, कवक उनके लक्षण, पौधों की अवस्था, जिसमें आक्रमण होता है, निम्नानुसार हैः-

1. झुलसा रोग (करपा)

आक्रमण – पौधे से लेकर दाने बनते तक की अवस्था तक इस रोग का आक्रमण होता है। इस रोग का प्रभाव मुख्य पत्तियों, तने की गाठें, बाली पर आँख के आकार के धब्बे बनते है बीच में राख के रंग के तथा किनारों पर गहरे भूरे या लालीमा लिये होते है। कई धब्बे मिलकर कत्थई सफेद रंग के बडे धब्बे बना लेते हैं, जिससे पौधा झुलस जाता है। गाठो पर या बालियों के आधार पर प्रकोप होने पर पौधा हल्की हवा से ही गाठों पर से तथा बाली के आधर से टूट जाता है।नियंत्रण –

  • स्वच्छ खेती करना आवश्यक है खेत में पडे पुराने पौध अवषेश को भी नष्ट करें।
  • रोग रोधी किस्में का चयन करें-जैसे आदित्य, तुलसी, जया, बाला, पंकज, साबरमती, गरिमा, प्रगति इत्यादि।
  • बीजोपचार करें-बीजोपचार ट्रायसायक्लाजोल या कोर्बेन्डाजीम अथवा बोनोमील – 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की मात्रा से घोल बना कर 6 से 12 घंटे तक बीज को डुबोये, तत्पश्चात छाया में बीज को सुखा कर बोनी करें।
  • खडी फसल के रोग के लक्षण दिखाई देने पर ट्रायसायक्लाजोल 1 ग्राम या कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रति ली. या मेन्कोजेब 3 3 ग्राम प्रति लीटर के हिसाब से छिड़काव करना चाहिये।
भूरा धब्बा या पर्णचित्ती रोग
आक्रमण- इस रोग का आक्रमण भी पौध अवस्था से दाने बनने कर अवस्था तके होता है।

लक्षण- मूख्य रूप से यह रोग पत्तियों, पर्णछन्द तथा दानों पर आक्रमण करता है पत्तियों पर गोंल अंडाकर, आयताकार छोटे भूरे धब्बे बनते है जिससे पत्तिया झुलस जाती है, तथा पूरा का पूरा पौधा सूखकर मर जाता है। दाने पर भूरे रंग के धब्बे बनते है तथा दाने हल्के रह जाते है।
नियंत्रण- खेत में पडे पुराने पौध अवषेष को नष्ट करें।
कोर्बेन्डाजीम- 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजोपचार करें।
खडी फसल पर लक्षण दिखते ही कार्बेन्डाजिम या मेन्कोजेब 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें तथा निरोधक जातिया जैसे- आई आर-36 की बुवाई करें।

खैरा रोग
लक्षण- जस्ते की कमी वाले खेत में पौध रोपण के 2 हफ्ते के बाद ही पुरानी पत्तियों के आधार भाग में हल्के पीले रंग के धब्बे बनते है जो बाद में कत्थई रंग के हो जाते हैं, जिससे पौधा बौना रह जाता है तथा कल्ले कम निकलते है एवं जड़े भी कम बनती है तथा भूरी रंग की हो जाती है।

नियंत्रण –खैरा रोग के नियंत्रण के लिये 20-25 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर बुवाई पूर्व उपयोग करें। खडी फसल में 1000लीटर पानी में 5किलोग्राम जिंक सल्फेट तथा 2.5किलोग्राम बिना बुझा हुआ चुने के घोल का मिश्रण बनाकर उसमें 2किलो ग्राम यूरिया मिलाकर छिड़काव करने से रोग का निदान तथा फसल की बढ़वार में वृद्धि होती है।

जीवाणु पत्ती झुलसा रोग-
लक्षण-इसका अक्रमण बाढ़ की अवस्था में होता है। इस रोग में पौधे की नई अवस्था में नसों के बीच पारदर्शिता लिये हुये लंबी-लंबी धरिया पड़ जाती है।, जो बाद में कत्थई रंग ले लेती है।

नियंत्रण – बीजोपचार स्ट्रेप्टोसायक्लीन 0.5 ग्राम/किलों बीज की दर से करें।

दाने का कंडवा (लाई फूटना)
आक्रमण- दाने बनने की अवस्था में

लक्षण- बाली के 3-4 दानें में कोयले जैसा काला पाउडर भरा होता है, जो या तो दाने के फट जाने से बाहर दिखाई देता है या बंद रहने पर सामान्यतः दाने जैसा ही रहता है, परन्तु ऐसे दाने देर से पकते है तथा हरे रहते है सूर्य की धूप निकलने से पहले देखने पर संक्रमित दानो का काला चूर्ण स्पष्ट दिखाई देता है।

नियंत्रण-इस रोग का प्रकोप अब तीव्र हो गया है। अतः बीज उपचार हेतु क्लोरोथानोमिल 2 ग्राम प्रति किलो बीज उपयोग करें।
लक्षण दिखते ही प्रभावीत बाली को निकाल दें व क्लोरोथानोमिल 2 ग्राम प्रति ली. की दर से छिड़काव करें है

कीट प्रबंधन
कीट का नाम लक्षण नियंत्रण हेतु अनुषंसित दवा दवा की व्यापारिक मात्रा उपयोग करने का समय एवं विधि
पत्ती लपेटक (लीफ रोलर) इस कीट की इल्ली हरे रंग की होती है, जो अपनी थूक से पत्ती के दोनो किनारों को आपस में जोड़ देती है। बाद में पत्तियां सूख जाती हैं। ट्राइजोफॉस 40 ई.सी.
प्रोफेनोफॉस 44 ई.सी. + साइपरमेथ्रिन 4 ई.सी.
1 लीटर/है.
750 मिली/है.
कीट का प्रकोप होने पर छिड़काव।
तना छेदक तना छेदक कीट कल्ले निकलने की अवस्था में पौध पर आक्रमण करता है एवं केन्द्रीय भाग को हानि पहंुचाता है और परिणाम स्वरूप पौधा सूख जाता है। कार्बोफ्यूरान 3 जी या कार्टेपहाइड्रोक्लोराइड 4 जी 25 किग्रा/है. कीट का प्रकोप होने पर छिड़काव।
भूरा भुदका तथा गंधी बग ब्राउन प्लांट हापर कीट पौधों के कल्लों के बीच में जमीन की उपरी सतह पर पाये जाते हैं। इनका आक्रमण फसल की दूधिया अवस्था एवं दाने के भराव के समय होता है। इनके रस चूसने के कारण तना सूख जाता है। गंधी वग कीट पौधों के विभिन्न भागों से रस चूसकर हानि पहुंचाता है। एसिटामिप्रिड 20 प्रतिषत एस.पी.
बुफ्रोजिन 25 प्रतिषत एस.पी.
125 किग्रा/है.
750 मिली/है.
कीट का प्रकोप होने पर छिड़काव।
कटाई – गहाई एवं भंण्डारण
पूर्ण तरह से पकी फसल की कटाई करें। पकने के पहले कटाई करने से दाने पोचे हो जाते है। कटाई में विलम्ब करने से आने झडते है तथा चावल अधिक टूटता हैं। कटाई के बाद फसल को 1-2 दिन खेत में सुखाने के बाद खलियान में ले जाना चाहिये। खलियान में ठीक से सुखने के बाद गहाई करना चाहिये। गहाई के बाद उड़ावनी करके साफ दाना इकट्ठा करना चाहिये और अच्छि तरह धूप में सुखाने के बाद भण्डारण करना चाहीये।

उपज –

सिंचित /हे. असिंचित/हे.
50-60 क्वि. 35-45 क्वि.

आय व्यय का संक्षिप्त ब्यौरा- औसत उत्पादन 50 क्विं. प्रति हे. होता है और 72500 की आमदानी होती है, जिसका खर्च लगभग 35000 प्रति हे. आता है । इस प्रकार एक हेक्टर में शुद्ध लाभ 37500 /- प्राप्त होता है।

अधिक उपज प्राप्त करने हेतु प्रमुख पांच बिन्दु
  • जलवायु परिवर्तन को दृष्टिगत रखते हुए सुनिश्चित सिंचाई वाले क्षेत्रों में धान की जल्दी पकने वाली संकर किस्मों (110-115 दिन में पकने वाली )की बुआई एसआरआई पद्धति से करें।
  • गहरी काली मिट्टी में वर्षा पूर्व धान की सीधी बुआई कतार में करें।
  • शीघ्र पकने वाली किस्में, जे.आर.एच.-5, 8, पी.एस.-6129, दंतेश्वरी, सहभागी, मध्यम समय में पकने वाली किस्में- डब्लू.जी.एल.-32100, पूसा सुगंधा-3, पूसा सुगंधा-5, एम.टी.यू-1010, जे आर 353 ।
  • क्रांति एवं महामाया किस्मों को प्रोत्साहित न किया जावे।
  • बासमती किस्मों से अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए पूसा बासमती-1121, पूसा बासमती-1509 एवं पूसा बासमती-1460 किस्मों को अधिक क्षेत्र में लगावें।
  • बुवाई कतारों में करें। अतिशीघ्र एवं शीघ्र पकने वाली किस्में को 15ग्15 से.मी. मध्यम समय में पकने वाली किस्मों को 20 ग्15 से.मी. तथा देर से पकने वाली किस्मों को 25 ग् 20 से.मी. की दूरी पर लगायें।
  • बोवाई अथवा रोपाई के 20 दिन बाद नील हरित काई 15 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर का प्रयोग करें।
सफलता की कहानी –
सफलता की कहानी
धान की श्री पद्धति से रिकार्ड उत्पादन किस्म – MTU .1010
किसान का नाम श्री ताराचन्द बिसेन
ग्राम सालेटेका, किरनापुर
उत्पादन वर्ष खरीफ 2013-14
रकबा हेक्टर
नर्सरी, रोपा, कटाई जून, जूलाई, नवबंर 2013
उत्पादन 70 क्विं./1450रू.(औसत) = 101500.00
शुद्ध लाभ (1 हेक्टर) कुल आय कुल लागत
 64000.00  101500.00 37500.00
सामान्य धान की खेती से आय
शुद्ध लाभ (1 हेक्टर) कुल आय कुल लागत
 30250.00  65250.00  35000.00
सामान्य धान खेती की तुलना में श्री पद्धति धान फसल उत्पादन से अतिरिक्त लाभ
अतिरिक्त लाभ संकर धान बीज उत्पादन से आय सामान्य धान खेती से आय
33750.00  64000.00
 30250.00
  • कम बीज मात्र 7.50 किलोंग्राम प्रति हेक्टर परहा लगाने में बहुत कम मजदुरी कीट बिमारीयों का कम प्रकोप।;
  • प्रति हेक्टर अधिक आय।
  • कृषिविज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिको के मार्गदर्शन में आधुनिक पद्धति से खेती करने पर अधिक उत्पादन व सामाजिक व आर्थिक साख बढ़ी।

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