आम की खेती की वैज्ञानिक विधि

आम की खेती:-

2012-13 क्षेत्रफल (000 हे.) उत्पादकता (000 मै.टन)
भारत 2312.3    1.044
म.प्र. 15026.8 1.255
प्रदेश में अधिकतर बाग अवैज्ञानिक तरीके से लगाये गये हैं वैज्ञानिक विधि अपनाकर,योजनाबद्ध तरीके से प्रबंधन किया जाय तो आम के फल उत्पादन में निष्चय ही बृद्धी की जा सकती है
भूमि :-
अच्छी जल धारण क्षमता वाली गहरी, बलुई दोमट सबसे उपयुक्त मानी जाती है। भूमि का पी.एच. मान 5.5-7.5 तक इसकी खेती के लिए उपयुक्त माना जाता है।
जलवायु :-
आम उष्णकटिबन्धीय पौधों वाला फल है फिर भी इसे उपोष्ण क्षेत्र में सफलतापूर्वक पैदा किया जा सकता है 25-27वब् तापमान तक इसकी खेती के लिए उपयुक्त माना जाता है। मानसून के दौरान 125 से. मी. वर्षा होती है जो इसके लिए उपयुक्त है।
आम की उपयुक्त किस्में एवं उनका विवरण:
किश्म का नाम पौधा कुल वनज ग्राम पल्प प्रतिषत टी.एस.एस. उत्पादन कीलो प्रति खास गुण
आम्रपाली 200-300 73.75 23.5 40 नियमित फलन साघनवागवानी हेतु उपयुक्त
दशाहरी 150-200 76.75 24.6 80 उत्तम स्वाद, छोटी गुठली
लंगड़ा 200-250 76.75 22.5 75 रेशा रहित गूधा छोटी गुठली
सुंदरजा 300-350 75.95 22.5 65 मनमोहक सुगंध-मीण
मल्लिका 200-350 72.20 22.20 65 नियमित फलन
पौधे तैयार करने का तरीका :-
वानस्पतिक प्रसारण की नई विधियों जैसे भेंटए कलमए चष्मा चढा़ना वीनियर कलम इत्यादि है। विनियर ग्राफिटंग व्यापारिक स्तर पर आम के पौधें तैयार करने की आसान व कम खर्चीली विधि है इस विधि में मातृ पौधे से बाहर सांकुर डाली काटकर नर्सरी में लगे बीजू पौधों पर बाँधकर नया पौधा ;कलमीद्ध तैयार किया जाता है। कुछ दिन बाद डंठल जब गिर जाये और शीर्ष कलि में उभार में आ जाय तो ये टहनियां कलम बांधने के लिए प्रयोग में लाना चाहिए। 1 वर्ष पुराने बीजू पौधे को मूलबृन्त के रूप में उपयोग करें।
पौध रोपण :-
आम के पौधों को 10*10 मीटर की दूरी पर लगाया जाता है, किन्तु सघन बागवानी में इसे 2.5 से 4 मीटर की दूरी पर लगाते हैं पौधे लगाने के लिए 1*1*1 मीटर का गढ्ढा खोदते हैं वर्षा प्रारंभ होने के पूर्व जून के माह में 20-30 कि. ग्रा. वर्मीकम्पोस्ट 2 कि.ग्रा. नीम की खली 1 कि. ग्रा. हड्डी का चूरा अथवा सिंगल सुपर फास्फेट एवं 100 ग्राम थीमेट (दीमक हेतु) 10 जी. को खेत की उपरी सतह की मिट्टी के साथ मिलाकर गड्ढ़े को अच्छी तरह भर देना चाहिए ।
पौधे की देख-रेख :-
आम के पौधे की देखरेख उसके समुचित फलन एवं पूर्ण उत्पादन हेतु आवष्यक है पौधे को लगाने के बाद जब तक पौधा पूर्ण रूप से स्थापित न हो जाय, पानी देते रहना चाहिए। शुरूआत के दो तीन वर्षों तक आम के पौधों को विषेष देखरेख की आवष्यकता होती है। जाड़े मंे पाले से बचाने के लिए एवं गर्मी में लू से बचाने के लिए सिंचाई का प्रबंधन करना चाहिए। जमीन से 80 से. मी. तक की शाखाओं को निकाल देना चाहिए।
फल वृक्षों को पोषण :-
आम के पौधों में खाद एवं उर्वरक निम्नानुसार देना चाहिए-
वर्ष गोबर की खाद (कि. ग्रा.) यूरिया (ग्राम) सिंगल सुपर फास्फेट (ग्राम) म्यूरेट आफ पोटाष (ग्राम)
1.3  2.5 200 150 150
4.10 10.00 900 800 600
10 वर्ष बाद 75.00 2000 1500 800
सिंचाई :-
आम के छोटे पौधों को गर्मियों में 4-7 दिन के अन्तर से तथा ठंड में 10-12 दिन के अन्तर से सिंचाई करनी चाहिए लेकिन फल वाले पेड़ों की अक्टूबर से जनवरी तक सिंचाई नही करनी चाहिए क्योंकि कि अक्टूबर के बाद यदि भूमि में नमी अधिक रहती है तो फल कम आते हैं, तथा नई शाखाएं ज्यादा आ जाती है।
पूरक पौधे एवं अन्तराषस्यन :-
आम के वृक्ष को पूर्ण रूप से तैयार होेने में 10-12 वर्ष का समय लगता है, आरंभ में 3-4 वर्षों में जब पेड़ छोटे रहते हैं, उनके बीच खाली जगह में, खरीफ में जई, मूंग, लोबिया, रबी में मटर, चना, मसूर या फ्रेंचबिन तथा गर्मियों में लोबिया मिर्ची या भिण्डी की फसलं लेकर आम फसल प्राप्त की जा सकती है अन्तराषस्य फसलों से अतिरिक्त आय प्राप्त होती है, साथ ही भूमि की उर्वराषक्ति भी बढ़ती है।
पुराने फल वृक्षों का जीर्णोद्धार :-
हम जानते हैं, कि आम के पौधे का जीवन काल 50 साल या इससे भी अधिक का होता है आम के पौधे में जैसे जैसे वह पुराना होता जाता है इसके मुख्य तना में खोखलापन आने लगता है, तथा षाखाएं आपस में मिल जाती हैं, तथ बहुत सघन हो जाती हैं आम के ऐसे पौधों में बारिष का पानी खोखली जगह में भर जाता है ।जिससे सड़न व गलन कि समस्या उत्पन्न होती है तथा, पौधे कमजोर हो जाते हैं और थोड़ी सी हवा में टूट जाते हैं, ऐसे मे उपचार के लिए सबसे पहले सभी अनुत्पादक शाखाओं को हटा देना चाहिए 100 कि.ग्रा. अच्छी पकी हुई गोबर की खाद तथा 2.5 कि.ग्रा. नीम की खली प्रति पौधा देना चाहिए। जिससे अगले सीजन में लगी शाखाओं में वृद्धि होती है।
पुष्पन एवं फलन :-
आम की 6-8 माह पुरानी शाखाओं मे फरवरी माह में फूल पूर्ण रूप से विकसित होकर खिल जाते हैं

आम की खेती

कीट एवं रोग नियंत्रण :-
कीट का नाम      लक्षण   नियंत्रण
मैंगो हापर फरवरी मार्च में कीट आक्रमण करता है। जिससे फूल-फल झाड़ जाते है एवं फफूँद पैदा होती है।  क्विीनालाफास का एक एम.एल दवा एक लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
मिलीबग फरवरी में कीट टहनियों एवं बौरों से रस चूसते हैं जिससे फूल फल झाड़ जाते है।  क्लोरपायरीफास का 200 ग्राम धूल प्रति पौधा भुरकाव करें।
मालफारर्मेषन पौधों की पत्तियां गुच्छे का रूप धारण करती है एवं फूल में नर फूलों की संख्या बड़ पाती है। प्रभावित फूल को काटकर दो एम.एल. नेप्थलीन ऐसटिक एसिड का छिड़काव 15 दिन के अंतर से 2 बार करें।
मैंगो मालफारर्मेषन (बंधा रोग) :-
इस रोग में छोटे पौधों की पत्तियां छोटी होकर गुच्छे का रूप धारण कर लेती हैंे एवं बड़े पौधों में पुष्पों के सभी अंग मोटे हो जाते हैं पुष्पक्रम की बढ़वार कम हो जाती है तथा उसमें नर फूलों की संख्या बढ़ जाती है, पुष्पक्रम के फूल बड़े आकार के हो जाते हैं एवं पुष्पक्रम गुच्छे का रूप धारण कर लेता है, उन पर फल नहीं बनते व कुछ समय बाद पुष्पक्रम मुड़ जाता है।
नियंत्रण
समस्त प्रभावित पुश्पक्रम को 15 से. मी. पीछे से काटकर नष्ट करें एवं अक्टूबर माह में 2 एम. जी. नेप्थलीन ऐसिटिक एसिड हार्माेन का छिड़काव 15 दिन के अंतर से 2 से 3 बार करें एवं क्वीनालफास का 0.05 प्रतिषत का छिड़काव करें।
एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में आम से होने वाली आय
एक हेक्टयर क्षेत्रफल में 10 * 10 मीटर में रोपण हेतु 100 पौधों की जरूरत पड़ती है जिसमें पौध रोपण हेतु निम्न साारणी अनुसार आय-व्यय होने की संभावना है।
कुल व्यय 
क्र. कार्य विवरण आदान   व्यय रु. में
1. पौध रोपाई फेन्सिंग, गड्ढा खुदाई, खाद एवं पौध रोपाई 55000.005000.00
2. वार्षिक रख रखाव सिंचाई, निदाई, गुड़ाई एवं पौध संरक्षण 35000.00/वर्ष
कुल खर्च  90,000.00
कुल आय
कुल उपज (क्विं /हे.) कुल आय (रु.) शुद्ध आय (रु.).
80 2,40,000.00 1,50,000.00

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