तुलसी की खेती से किसान कमा रहे लाखों

तुलसी का पौधा खास औषधीय महत्त्व वाला होता है. इस के जड़, तना, पत्ती समेत सभी भाग उपयोगी हैं. यही कारण है कि इस की मांग लगातार बढ़ती ही चली जा रही है. मौजूदा समय में इसे तमाम मर्जों के घरेलू नुस्खों के साथ ही साथ आयुर्वेद, यूनानी, होमियोपैथी व एलोपैथी की तमाम दवाओं में अनिवार्य रूप से इस्तेमाल किया जा रहा है. इस की पत्तियों में चमकीला वाष्पशील तेल पाया जाता है, जो कीड़ों और बैक्टीरिया के खिलाफ काफी कारगर होता है|

तुलसी से होता है कई बीमारियों का इलाज

तुलसी एक ऐसी महत्वपूर्ण औषधीय है जिसकी सहायता से कई तरह की बीमारियों का इलाज हो जाता है. यह एक बेहद ही अच्छी औषधीय है.

  1. तुलसी का सेवन करने से प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है.
  2. शहद के साथ इसका सेवन करने पर किडनी की पथरी का छह माह में इलाज हो जाता है.
  3. कोलेस्ट्रोल को नियंत्रण करने में मदद करती है.
  4. तुलसी की पत्तियों के रस का नियमित सेवन से दिल संबंधी समस्याओं का निदान हो जाता है.

अब बढ़ती मांग के कारण तुलसी केवल आंगन की नहीं रह गई है, बल्कि इस की मांग वैश्विक हो चुकी है. तुलसी मुख्य रूप से 3 तरह की होती है. पहली हरी पत्ती वाली, दूसरी काली पत्ती वाली और तीसरी कुछकुछ नीलीबैगनी रंग की पत्तियों वाली. खास बात यह है कि यह कम सिंचाई वाली और कम से कम रोगों व कीटों से प्रभावित होने वाली फसल होती है. अगर किसान सही तरीके से मार्केटिंग का मंत्र जान लें, तो इस में कोई शक नहीं कि यह भरपूर मुनाफा देने वाली फसल सबित होगी.

मिट्टी : तुलसी की खेती आमतौर पर सामान्य मिट्टी में आसानी से हो जाती है. मोटेतौर पर कहें तो अच्छे जल निकास वाली भुरभुरी व समतल बलुई दोमट, क्षारीय और कम लवणीय मिट्टी में इस की खेती आसानी से की जा सकती है.

कैसी हो आबोहवा : तुलसी की खेती के लिए गरम जलवायु बेहतर है. यह पाला बिल्कुल बर्दाश्त नहीं कर पाती है.

कब लगाएं : इस की नर्सरी फरवरी के अंतिम हफ्ते में तैयार करनी चाहिए. यदि अगेती फसल लेनी है, तो पौधों की रोपाई अप्रैल के मध्य से शुरू कर सकते हैं. वैसे मूल रूप से यह बरसात की फसल है, जिसे गेहूं काटने के बाद लगाया जाता है.

खेत की तैयारी : सब से पहले गहरी जुताई वाले यंत्रों से 1 या 2 गहरी जुताई करने के बाद पाटा लगा कर खेत को समतल कर देना चाहिए. इस के बाद सिंचाई और जलनिकास की सही व्यवस्था करते हुए सही आकार की क्यारियां बना लेनी चाहिए.

नर्सरी और रोपाई का तरीका : 1 हेक्टेयर खेत के लिए लगभग 200-300 ग्राम बीजों से तैयार पौध सही होतेहैं. बीजों को नर्सरी में मिट्टी के 2 सेंटीमीटर नीचे बोना चाहिए. बीज अमूमन 8-12 दिनों में उग आते हैं. इस के बाद रोपाई के लिए 4-5 पत्तियों वाले पौधे लगभग 6 हफ्ते में तैयार हो जाते हैं. प्रति हेक्टेयर अधिक उपज और अच्छे तेल उत्पादन के लिए लाइन से लाइन की दूरी 45 सेंटीमीटर और

पौधे से पौधे की दूरी 20-25 सेंटीमीटर जरूर रखनी चाहिए.

खाद और उर्वरक : तुलसी के पौधे के तमाम भागों को ज्यादातर औषधीय इस्तेमाल में लिया जाता है, इसलिए बेहतर होगा कि रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल न करें या बहुत कम करें. 1 हेक्टेयर खेत में 10-15 टन खूब सड़ी हुई गोबर की खाद या 5 टन वर्मी कंपोस्ट सही रहती है. यदि रासायनिक उर्वरकों की जरूरत पड़ ही जाए तो मिट्टी की जांच के अनुसार ही इन का इस्तेमाल करना चाहिए. सिफारिश की गई फास्फोरस और पोटाश की मात्रा जुताई के समय व नाइट्रोजन की कुल मात्रा 3 भागों में बांट कर 3 बार में इस्तेमाल करनी चाहिए.

सिंचाई : पहली सिंचाई रोपाई के तुरंत बाद करनी चहिए. उस के बाद मिट्टी की नमी के मुताबिक सिंचाई करनी चहिए. वैसे गरमियों में हर महीने 3 बार सिंचाई की जरूरत पड़ सकती है. बरसात के मौसम में यदि बरसात होती रहे, तो सिंचाई की कोई जरूरत नहीं पड़ती है.

कटाई : जब पौधों में पूरी तरह फूल आ जाएं तो रोपाई के 3 महीने बाद कटाई का सही समय होता है. ध्यान रहे कि तेल निकालने के लिए पौधे के 25-30 सेंटीमीटर ऊपरी शाकीय भाग की कटाई करनी चाहिए.

पैदावार : मोटेतौर पर तुलसी की पैदावार तकरीबन 5 टन प्रति हेक्टेयर साल में 2-3 बार ली जा सकती है.

आमदनी : आमदनी तेल की गुणवत्ता, मात्रा, बाजार मूल्य और किसान की समझदारी पर निर्भर होती है. फिर भी माहिरों के अनुसार 1 हेक्टेयर खेत से लगभग 1 क्विंटल तेल की प्राप्ति होती है, जिस से तकरीबन 40000-50000 रुपए हासिल किए जा सकते हैं. सब से अच्छा होगा कि इस की खेती करने से पहले मार्केटिंग के बारे में गहराई से जानकारी इकट्ठा कर लें ताकि इसे बेचने के लिए भटकना न पड़े और उत्पाद का वाजिब मूल्य भी मिल सके.

क्या कहते हैं जानकार : तुलसी की खेती के बारे में केंद्रीय औषधि व सगंध पौध संस्थान (सीमैप) लखनऊ (उत्तर प्रदेश) के वैज्ञानिक डा. आरके श्रीवास्तव कहते हैं, ‘यह 90 दिनों में होने वाली बरसात की फसल है, जिस में रोग और कीट बहुत ही कम लगते हैं. परंतु इस में पानी 2 दिन भी नहीं ठहरना चाहिए, अगर पानी ठहरता है, तो फसल का नुकसान तय है. संस्थान ने तमाम ऐसी प्रजातियां विकसित की हैं, जिन में रोगों व कीटों का प्रकोप बहुत कम होता है. सीमैप, सौम्या और विकार सुधा अच्छी प्रजातियां हैं|

बारिश से सोयाबीन बर्बाद, तुलसी दे रही फायदा

अनोखीलाल पाटीदार का कहना है कि भारी बारिश हो जाने से उनके खेतों में लगी सोयाबीन की फसल पूरी तरह से नष्ट हो गई है लेकिन तुलसी की फसल को कोई नुकसान नहीं पहुंचा है. उन्होंने अपने 10 बीघा खेत के अंदर 10 किलो बीज डालकर खेती शुरू की है. इन 10 किलों बीज की कीमत 3 हजार रूपये है. इसके अलावा इसकी खेती पर 10 हजार रूपये खाद और 2 हजार अन्य पर खर्च हुए है. इसकी सिंचाई भी केवल एक बार ही करनी पड़ती है. पिछले सीजन में इसमें 8 क्विंटल उत्पादन हुआ और कुल तीन लाख रूपये की भी कमाई हुई है. यदि मंडी के भाव की बात करें तो तुलसी बीज नीम मंडी में 30 से 40 हजार प्रति क्विंटल के भाव में बिक जाते हैं|

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.