किसान का हक मांगना भी गुनाह हो गया

“किसान पहले अंग्रेजो का गुलाम था आज अपनों का ,
 अपनी सरकार का , अपने व्यापारियों का गुलाम है |”
                                                                     नवल पटेल 

 

इस बात में कोई आश्चर्य नही है की किसान का शोषण सदियों से होता आ रहा है |
पहले अंग्रेज लूटते थे , किसानो पर अत्याचार करते थे , परन्तु देश आजाद होने के बाद किसान को लगा
की अब हम स्वतंत्र है ,उस भोले किसान को इतने सालो में ये महसूस नही हुआ की वो आज भी गुलाम ही है|
किसान आज भी अपने उत्पाद का भाव तय नही कर सकता , आज भी व्यापारी वर्ग ये तय करता है की
क्या कीमत देनी है बगैर परवाह किये किसान के खून पसीने की कमाई की |

किसान हड़ताल
देश में किसानो की दुर्दशा का कारण देश की सरकारें ही रही है चाहे वर्तमान सरकार हो या पूर्ववर्ती सरकार |
कभी वास्तविकता में आंकलन नही कराया की किसान की लागत और उत्पादन में क्या अंतर है , खाद और बीज के भाव पे कोई संतोषजनक नियंत्रण नही है |

जब किसान बीज लेने जाता है तो तिगुना भाव देता है , पर जब उसी फसल को बाजार और मंडियों में भेजने जाता है तो आधे भाव में भी नही बेंच पाता |
और अधिक उत्पादन होने पर किसान अपनी फसल को मट्टी के मोल बेंचने को मजबूर हो जाता है और कभी अपनी फसल को सड़क पे फेंकने में भी हिचक नही करता |

किसान बजार के सारे उत्पाद अपने दैनिक जीवन में उपयोग करता है , जिनमे अधिकतर में वो अपना कच्चा माल देता है ,पर उसकी फसल की तुलना में बाजार के उत्पाद बहुत अधिक मंहगे है|
इन परिस्तिथि में वो अपने जीवन का निर्वाह करे भी तो कैसे , देश का दुर्भाग्य है  कि आज भी देश में यैसे अन्नदाता को आखिर प्राण त्याग करना पड़ता है |

kisan hadtal - kisan suicide

किसान की विवशता पे सरकारें सिर्फ घोषणाएं करते आई है और उसकी हालत का मजाक बनाते आई है |
सबसे बड़ा दुर्भाग्य मीडिया , समाचार पत्रों के कारण है जो किसान की हड़ताल को उपद्रव का नाम दे रही है|
इन्हें हड़ताल में फिकता दूध तो दीखता हिया पर मट्टी के मोल विकती फसल , मंडियों के वाहर फिकता प्याज , टमाटर , आलू नही दीखता ,पेड़ों पे लटकता किसान नही दिखता |

बड़े बड़े सर्वे करते है जब चुनाव होते है , पर आज तक किसान की परिस्थितियों का सर्वे नही किया |
आज भी 70 प्रतिसत जनता गांवों में रहती है और खेती किसानी पे निर्भर है |

हमे किसान के प्रति संवेदनशील होना होगा , एक क्विंटल गेंहू में हम साल भर रोटी खा सकते है जिसकी कीमत सिर्फ 1500 होती है |

हमे ये बहुत अधिक भाव लगता है पर किसान परिवार अपने लिए एक जोड़ी कपडा भी नही पहन पाता इतने में |
हम होटलों में एक वार के खाने में हजार पंद्रह सो रूपये दे आते है जबकि किसान को अपनी फसल के लिए 3 महीने मेहनत करना पड़ता है |
आज भी देश में किसानो की हालत का वर्णन करने के लिए शब्द नही है |

किसान की एक जुटता का परिणाम निकलना चाहिए उसे उसके उत्पाद के सही दाम मिलने चाहिए |
सरकार इस बात को न भूले की आजादी की लड़ाई की मुख्य बजह किसान ही थे वो लड़ाई दूसरों से थी
पर क्या सरकार को ये नही विचार आता की किसान सरकार के खिलाफ क्यों लड़ रहा है ,
बजह यही है कि
किसान पहले अंग्रेजो का गुलाम था आज अपनों का ,अपनी सरकार का , अपने व्यापारियों का गुलाम है |”

माननीय प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी जी को किसान हित में एक कठोर कदम उठाने की आवस्यकता है
नही हो किसान के अपने घर का असंतोष देश का असंतोष बनने में ज्यादा समय नही लगेगा क्युकी
किसान अपनी तखलीफ़ की चरम सीमा पर है , आजादी के 70 साल तक इन्तजार करते आ रहा है
देश के नेतृत्व से , देश की सरकार से अपने हक मिलने का |
अगर येसा न हुआ तो किसानो के पूर्वज धिक्कारेंगे किसान को और किसान फिर इन्कलाब लायेंगे अपनों के खिलाफ |

आज सच्चे अर्थो में किसान के हित संरक्षित करने की आवस्यकता है भारतीय सरकार को , माननीय प्रधान मंत्री जी को |

नवल पटेल

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