प्रतिबंध के बाद भी जला रहे गेंहू की नरवाई
गेंहूं की कटाई प्रारंभ हो चुकी है। कटाई के बाद बचे गेंहूं के डंठलों , नरवाई से किसान भूसा न बनाकर इसे जला देते हैं। भूसे की आवश्यकता पशु आहार के साथ ही अन्य वैकल्पिक साधन के रूप में की जा सकती है। भूसा इंर्ट- भट्टा एवं अन्य उद्योगों में उपयोग किया जाता है। भूसे की मांग प्रदेश के अन्य जिलों के साथ अनेक प्रदेशों में भी होती है। एकत्रित भूसा 4 से 5 रूपये प्रति किलोग्राम की दर पर विक्रय किया जा सकता है। पर्याप्त भूसा उपलब्ध नहीं होने के कारण पशु पॉलीथिन जैसे अन्य हानिकारक पदार्थ खाते हैं जिससे वे बीमार होते हैं और पशुधन की हानि होती है। नरवाई का भूसा आज से दो- तीन माह बाद दोगुनी दर पर विक्रय होता है।
नरवाई में आग लगाना कृषि के लिये नुकसानदायक होने के साथ ही पर्यावरण की दृष्टि से भी हानिकारक है। इसके कारण विगत वर्षों में गंभीर स्वरूप की अग्नि दुर्घटनायें हुई हैं। साथ ही सम्पत्ति की व्यापक हानि हुई है। गर्मी के मौसम में इससे जल संकट में बढोत्तरी होती है और कानून व्यवस्था के लिए विपरीत परिस्थितियां बनती हैं। खेत की आग अनियंत्रित होने पर जन- धन सम्पत्ति, प्राकृतिक वनस्पति, जीवजंतु आदि नष्ट हो जाते हैं, जिससे व्यापक नुकसान होता है। खेत की मिट्टी में प्राकृतिक रूप से पाये जाने वाले लाभकारी सूक्ष्म जीवाणु आग से नष्ट हो जाते हैं, जिससे खेत की उर्वरा शक्ति क्रमशः घट रही है और उत्पादन प्रभावित हो रहा है। खेत में पडा कचरा, भूसा, डंठल सडने के बाद भूमि को प्राकृतिक रूप से उपजाऊ बनाते हैं, इन्हें जलाकर नष्ट करना नुकसानदायक है। आग लगाने से हानिकारक गैसों का उत्सर्जन होता है, जिससे पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड रहा है।