हरी खाद (ग्रीन मैन्योर) धरती के लिये वरदान है। यह भूमि की संरचना को भी सुधारते हैं एवं पोषक तत्व भी उपलब्ध कराते हैं। जानवरों को खाने में जैसे रेशेवाले पदार्थ की मात्रा ज्यादा रहने से स्वास्थ्य के लिये अच्छा रहता है उसी प्रकार रेशेवाले खाद (हरी खाद) का खेतों में ज्यादा प्रयोग खेत के स्वास्थ्य के लिये अच्छा है। हरी खाद एक प्रकार का जैविक खाद है जो शीघ्र विघटनशील हरे पौधों विशेषकर दलहनी पौधों को उसी खेत में उगाकर, जुताई कर मिट्टी में मिला देने से बनता है।
जीवित व सक्रिय मृदा वही कहलाती है जिसमें जीवांश की मात्रा अधिक होती है। जीवाणुओं का भोजन प्राय: कार्बनिक पदार्थ ही होते हैं। मिट्टी की उर्वराशक्ति जीवाण्ाुओं की मात्रा एवं क्रियाशीलता पर निर्भर करती है। केवल जैविक, हरी खाद एवं जीवाणु खाद द्वारा ही स्थाई रूप से मिट्टी की उर्वराशक्ति में वृध्दि कर सकते हैं।
जयपुर जिला में खेती योग्य भूमि तीन तरह की है – (क) टांड या उपरी भूमि (ख) मध्यम भूमि एवं (ग) दोन या निचली भूमि। टांड और मध्यम भूमि में बलुआही मिट्टी की अधिकता पायी जाती है। इसमें जैविक पदार्थ बहुत कम होने की वजह से नाईट्रोजन, फॉस्फोरस और सल्फर तत्वों की कमी होती है। इसकी अम्लीयता भी अधिक होती है। अधिक अम्लिक होने के कारण इस मिट्टी की घुलशील फॉस्फोरस तत्व की कमी रहती है। अधिक वर्षा होने के कारण कार्बनिक पदार्थ व सूक्ष्म चिकना पदार्थ बह जाते हैं। जिसके कारण जलधारण की क्षमता कम होती है। दोन या निचली भूमि में कार्बनिक पदार्थ व क्ले अपेक्षाकृत अधिक होने से उसकी उर्वरता ज्यादा होती है एवं नमी अधिक समय तक बनी रहती है।
हरी खाद के लिये फसलों का चुनाव – हरी खाद के लिये फसलों का चुनाव आवश्यक है।
- दानेदार फलीदार पौधे– मटर, मूंग, उरद, लोविया, सोयाबीन इत्यादि।
- बिना दाने वाले फलीदार पौधे या चारे वाली फलीदार पौधे– सनई, ढैंचा, स्टाइलों, सैंजी आदि।
- गैर फलीदार पौधे- मकई, ज्वार, भांग इत्यादि।
हरी खाद के लिये उपयुक्त पौधे के चुनाव में निम्नलिखित बातों पर ध्यान रखना चाहिये-
- पौधे को जल्दी बढ़ने वाले एवं घने पत्तो वाले होने चाहिये।
- सूखा, बाढ़, छॉह एवं विभिन्न तापमान सहने वाले पौधे।
- शीघ्र व लम्बे समय तक वायुमण्डलीय नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले पौधे।
- 4-6 सप्ताह के अन्त तक अच्छी पैदावार करने वाले पौधे।
- मिट्टी में आसानी से मिल सके एवं शीघ्र सड़ने वाले पौधे।
- रोग एवं कीट प्रतिरोधक पौधे।
- कम उर्वराशक्ति में भी उपजने की क्षमता।
हरी खाद लगाने का समय –
प्राय: मानसून की पहली वर्षा के बाद अगर सिंचाई की सुविधा है तो पहले लगाकर अधिक लाभ एवं समय का समुचित प्रयोग फसल चक्र के अनुसार किया जा सकता है।
खेत में मिलाने का समय –
अधिकांश फसलों में हरी खाद फसल को मिलाने का समय बोआई के आठ सप्ताह के अंदर आ जाता है। इस समय अधिकतम वानस्पतिक वृध्दि हो चुकी होती है तथा तना व जड़ कड़े नहीं होते हैं।अधिकांश वैज्ञानिकों का इस संबंध में मत है कि हरी खाद की फसल को दबाने और मुख्य फसल बोने के समय के बीच कम से कम दो महीनों का अंतर होना चाहिये । वैसे यह निम्न बातों पर निर्भर करता है
- मौसम।
- हरी खाद के पौध की स्थिति।
- धान को रोपनी के समय गर्म और आर्द्रता ज्यादा होने पर एक सा प्राप्त या कम समय।
हरी खाद के लाभ
- इससे कार्बनिक पदार्थ की वृध्दि होती है जिससे सूक्ष्म जीवों की सक्रियता बढ़ जाती है।
- इससे मिट्टी मे कई सूक्ष्म व वृहद् पोषक तत्व प्राप्त होते हैं, जैसे-नाईट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश, सल्फर, कैल्शियम, मैग्नेशियम इत्यादि।
- मृदा जनित रोग का रोकथाम होता है।
- मिट्टी के भौतिक गुणों जैसे-संरचना, जलधारण में वृध्दि होती है।
- आवश्यक पोषक तत्वों को बहने से रोकता है।
- आम्लिक मिट्टी में फॉसफोरस की स्थिरीकरण को कम करता हैं।
- औसतन 50 किलोग्राम नाईट्रोजन प्रति हे0 की प्राप्ति होती है।
- धान की फसल में हरी खाद के प्रयोग से फॉसफोरस व पोटाश की उपलब्धता में 10-12 प्रतिशत की वृध्दि होती है।
हरी खाद के लिये मूंग/ उरद/ लोबिया/ सोयाबीन, ढैंचा सा सनई की अपेक्षा ज्यादा लाभदायक होता है क्योंकि इससे दाना (6-12 कि0ग्रा0/हे0) प्राप्त होता है तथा अगली फसल को डंठल सड़ने से पोषक तत्व भी मिलता है। कुछ फसलों में हरी खाद इस प्रकार प्रयोग करना चाहिये।
धान फसल – धान की फसल लेने के पहले मई महीने में सिंचाई की सुविधा वाली क्षेत्रों में 45 दिनों में बोने वाली मूंग की फसल लेते हैं। फली तोड़ने के बाद डंठल को खेत में मिलाकर जुताई करते हैं। इसके बाद 10-20 दिनों के बाद धान की रोपाई करते हैं।
आलू फसल – आलू की फसल लेने से पहलेे लोबिया, कुल्थी, गुआरफली इत्यादि फसल हरी खाद के रूप में लेते हैं। फली तोड़ने के बाद डंठल को सड़ने के लिये खेत में जुताई कर मिला देते हैं। 15-20 दिनों बाद आलू की फसल लगाते हैं।
खरीफ की फसल के लिए हरी खाद-
1) मानसून की पहली वर्षा के साथ कम समय वाली दलहनी फसल जैसे मूंग की बोआई करते हैं। 45 दिनों के बाद फली की पहली पैदावार तोड़कर शेष पौधों को खेत में जोत देते हैं। इसके बाद देर से लगने वाली खरीफ की फसल लेते हैं।
2) सबुल की पत्तिायॉ तथा कोमल डंठल प्रथम वर्षा के साथ खेत में अच्छी तरह मिलाते हैं। 10 दिनों के बाद खरीफ फसल की बुआई करते हैं।
3) प्राकृतिक पौधों की हरी पत्तिायॉ का हरी खाद के रूप में प्रयोग करते हैं इसके लिये फुटुस, सदाबहार, चकोर, ढैंचा, करंज की पत्तिायॉ, जलकुम्भी इत्यादि का प्रयोग किया जाता है। फसल की रोपाई या बोआई के 15-20 दिन पहले इन्हें खेत में मिलाकर जोताई कर दिया जाता है। इसकी मात्रा उपलब्धता के अनुसार 15-20 टन प्रति हे0 की दर से डाला जाता है। मानसून की पहली वर्षा के बाद खेत में नमी होने पर इसे मिला दिया जाता है।