मिर्च की उन्नत खेती कैसे करें ? मिर्च उत्पादन की उन्नत तकनीक

मिर्च की खेती उष्ण कटिबंधीय भागों में की जाती है| मिर्च को मसाले, सब्जी के अलावा औषधि, सॉस तथा अचार के लिए उपयोग किया जाता है| इसमें विटामिन ‘ए’ और ‘सी’, फॉस्फोरस और कैल्शियम प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं| भारत में मुख्य उत्पादन वाले राज्य आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, उडीसा, तामिलनाडु एवं राजस्थान है| मिर्च में तीखापन इस में विद्यमान रसायन कैप्सेइसिन के कारण होता है| मिर्च में तीखापन व सुगंध के कारण इसका उपयोग मुख्यत: मसाले के रूप में होता है, जो भोजन को उचित तीखापन देने के साथ-साथ पाचनशीलता भी बढ़ाता है| मिर्च में पाये जाने वाले तीखे पदार्थ केप्सेइसिन की दवाई व सौन्दर्य प्रसाधन उद्योग में भी भारी मांग है|

किसानों के लिए मिर्च एक महत्वपूर्ण नगदी फसल है| सब्जी के लिए शिमला मिर्च, अचार के लिए मोटी लाल मिर्च, सलाद के लिए हरी मिर्च और मसालों के लिये सूखी लाल मिर्च की खेती लाभदायक होती हैं| इसके महत्व के अनुसार किसानों को इसकी वैज्ञानिक तकनीक से खेती करनी चाहिए| ताकि उनको इसकी फसल से अधिकतम पैदावार प्राप्त हो सके| इस लेख में मिर्च की उन्नत खेती कैसे करें का विस्तृत उल्लेख किया गया है|
उपयुक्त जलवायु
मिर्च की फसल के लिए गर्म तथा आर्द्र जलवायु लाभकारी हैं| इसके पौधे के लिये अत्यधिक ठंड व गर्मी दोनों ही हानिकारक हैं| इसकी खेती हर प्रकार की जलवायु में आसानी से की जा सकती है| वर्षा आधारित फसल के लिए 100 सेन्टीमीटर वर्षा वाले क्षेत्रों में भी आसानी से उगाया जा सकता है| अंकुरण से बढ़वार के लिए 17 से 21 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान मिर्च का अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए अनुकूल रहता है| मिर्च की फसल में फूल व फल आने के समय गर्म हवायें हानिकारक होती है| मिर्च पर पाले का प्रकोप अधिक होता है| अतः पाले की आशंका वाले क्षेत्रों में इसकी अगेती फसल ली जा सकती हैं|

भूमि चयन

मिर्च को अच्छे जल-निकास वाली प्रायः सभी प्रकार की भूमि में पैदा किया जा सकता है| फिर भी जीवांशयुक्त दोमट या बलुई मिटटी जिसमें कार्बनिक पदार्थ की मात्रा अधिक हो सबसे उपुयक्त होती है| लवण और क्षार युक्त भूमि इसके लिए उपयुक्त नहीं है| लवण वाली भूमि इसके अंकुरण और प्रारंभिक विकास को प्रभावित करती हैं| मिर्च के लिए मिटटी का पी एच मान 6.5 से 7.5 सर्वोतम है, लेकिन इसको 8 पी एच मान (वर्टीसोल्स) वाली मिटटी में भी उगाया जा सकता है|

उन्नतशील किस्में
मिर्च की उन्नत फसल के लिए सामान्य व संकर किस्मों की क्षमता के अनुसार उत्पादन ले पाना तभी संभव है| जब उसके लिए उचित प्रबंधन एवं अनुकूल जल व मिटटी और अपने क्षेत्र की प्रचलित किस्म उपलब्ध हो| इसलिए किसानों को अपने क्षेत्र की प्रचलित और अधिकतम पैदावार वाली किस्म का चयन करना चाहिए| साथ में किस्मों में विकार रोधी क्षमता भी आवश्यक है| कुछ प्रचलित सामान्य व संकर किस्में इस प्रकार है, जैसे-

मसाले वाली किस्में– पूसा ज्वाला, पन्त सी- 1, एन पी- 46 ए, जहवार मिर्च- 148, कल्याणपुर चमन, भाग्य लक्ष्मी, आर्को लोहित, पंजाब लाल, आंध्रा ज्योति और जहवार मिर्च- 283 आदि प्रमुख है|

आचार वाली किस्में– केलिफोर्निया वंडर, चायनीज जायंट, येलो वंडर, हाइब्रिड भारत, अर्का मोहिनी, अर्का गौरव, अर्का मेघना, अर्का बसंत, सिटी, काशी अर्ली, तेजस्विनी, आर्का हरित और पूसा सदाबहार (एल जी- 1) आदि प्रमुख है|

उपज / उत्पादन (क्वि./हे .) – काशी अनमोल (उपज 250 क्वि. / हे.), काशी विश्वनाथ (उपज 220 क्वि./ हे.), जवाहर मिर्च – 283 (उपज 80 क्वि. / हे हरी मिर्च.) जवाहर मिर्च -218 (उपज 18-20 क्वि. / हे सूखी मिर्च.) अर्का सुफल (उपज 250 क्वि. / हे.) तथा संकर किस्म काशी अर्ली (उपज 300-350 क्वि. / हे.), काषी सुर्ख या काशी हरिता (उपज 300 क्वि. / हे.) का चयन करें। पब्लिक सेक्टर की एचपीएच-1900, 2680, उजाला तथा यूएस-611, 720 संकर किस्में की खेती की जा रही है।

काशी अनमोल (उपज 250 क्वि. / हे.), काशी विश्वनाथ (उपज 220 क्वि./ हे.), जवाहर मिर्च – 283 (उपज 80 क्वि. / हे हरी मिर्च.) जवाहर मिर्च -218 (उपज 18-20 क्वि. / हे सूखी मिर्च.) अर्का सुफल (उपज 250 क्वि. / हे.) तथा संकर किस्म काशी अर्ली (उपज 300-350 क्वि. / हे.), काषी सुर्ख या काशी हरिता (उपज 300 क्वि. / हे.) का चयन करें। पब्लिक सेक्टर की एचपीएच-1900, 2680, उजाला तथा यूएस-611, 720 संकर किस्में की खेती की जा रही है।

बीज दर

मिर्च की ओ पी किस्मों की 1.0 से 1.50 किलोग्राम तथा संकर (हायब्रिड) किस्मों की 250 से 350 ग्राम बीज की मात्रा एक हेक्टेयर क्षेत्र की नर्सरी तैयार करने के लिए पर्याप्त होती है|

मिर्च की पौध तैयार करना तथा नर्सरी प्रबंधन

मिर्च की पौध तैयार करने के लिए ऐसे स्थान का चुनाव करें जहाँ पर पर्याप्त मात्रा में धूप आती हो तथा बीजो की बुवाई 3 गुणा 1 मीटर आकार की भूमि से 20 सेमी ऊँची उठी क्यारी में करें। मिर्च की पौधषाला की तैयारी के समय 2-3 टोकरी वर्मी कंपोस्ट या पूर्णतया सड़ी गोबर खाद 50 ग्राम फोटेट दवा / क्यारी मिट्टी में मिलाऐं। बुवाई के 1 दिन पूर्व कार्बन्डाजिम दवा 1.5 ग्राम/ली. पानी की दर से क्यारी में टोहा करे। अगले दिन क्यारी में 5 सेमी दूरी पर 0.5-1 सेमी गहरी नालियाँ बनाकर बीज बुवाई करें।

नर्सरी एवं रोपाई समय

रोपाई की तकनीक एवं समय  – मिर्च की रोपाई वर्षा, शरद, ग्रीष्म तीनों मौसम  मे की जा सकती है। परन्तु मिर्च की मुख्य फसल खरीफ (जून-अक्टू.) मे तैयार की जाती है। जिसकी रोपाई जून.-जूलाई मे, शरद ऋतु की फसल की रोपाई सितम्बर-अक्टूबर तथा ग्रीष्म कालीन फसल की रोपाई फर-मार्च में की जाती है।

पोषक तत्व प्रबंधन तकनीक  – मिर्च की फसल मे उर्वकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर करे। सामन्यतः एक हेक्टेयर क्षेत्रफल मे 200-250 क्वि गोबर की पूर्णतः सडी हुयी खाद या 50 क्वि. वर्मीकंपोस्ट खेत की तैयारी के समय मिलायें। नत्रजन 120-150 किलों, फास्फोरस 60 किलो तथा पोटाष 80 किलो का प्रयोग करे।

बीज की मात्रा – मिर्च की ओ.पी. किस्मों के 500 ग्राम तथा संकर (हायब्रिड) किस्मों के 200-225 ग्राम बीज की मात्रा एक हेक्टेयर क्षेत्र की नर्सरी तैयार करने के लिए पर्याप्त होती है।

मिर्च की रोपाई वर्षा, शरद, ग्रीष्म तीनो मौसम में की जा सकती है| परन्तु मिर्च की मुख्य फसल खरीफ जून से अक्तूबर मे तैयार की जाती है| जिसकी रोपाई जून से जुलाई मे, शरद ऋतु की फसल की रोपाई सितम्बर से अक्टूबर और ग्रीष्म कालीन फसल की रोपाई फरवरी से मार्च में की जाती है| रोपाई के लिये पौध 25 से 35 दिनों से अधिक पुरानी नही होनी चाहिए अर्थात नर्सरी में बीज की बुवाई मुख्य खेत में रोपाई के 4 से 5 सप्ताह पहले करें|

नर्सरी की तैयारी

मिर्च की पौधशाला तैयार करते समय निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए, जैसे-

  1. मिर्च की पौधशाला की तैयारी के समय 2 से 3 टोकरी वर्मीकंपोस्ट या पूर्णतया सड़ी गोबर खाद 50 ग्राम फोरेट दवा प्रति क्यारी की मिट्टी में मिलाएं|
  2. मिर्च की पौध तैयार करने के लिए बीजों की बुवाई 3 गुणा 1 मीटर आकार की भूमि से 15 सेंटीमीटर उँची उठी क्यारी में करें|
  3. बुवाई के 1 दिन पूर्व कार्बन्डाजिम दवा 1.5 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से क्यारी को तर करे| घरेलू बीज इस्तेमाल कर रहे किसानों को सलाह है, कि वो बीज को थायरम 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें|
  4. अगले दिन क्यारी में 5 सेंटीमीटर दूरी पर 0.5 से 1 सेंटीमीटर गहरी नालियाँ बनाकर बीज बुवाई करें|
  5. बीज बोने के बाद गोबर खाद, मिटटी व बालू (1:1:1) मिश्रण से ढकने के बाद क्यारियों को धान के पुआल, सूखी घास या पलाष के पत्तों से ढकें|
  6. अंकुरण के 10 दिन बाद कापर आक्सीक्लोराइड की 2 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें|

सिचाई प्रबंधन
मिर्च की फसल को मिट्टी की किस्म, भूमि के प्रकार व वर्षा के आधार पर सिंचाई कर सकते हैं। यदि वर्षा कम हो रही हो तो 10 से 15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करना चाहिए| यदि मिट्टी दोमट मिट्टी हो तो 10 से 12 दिन के अंतराल पर और ढालू भूमि पर 10 दिन के अंतराल पर सिंचाई करना चाहिए| मिर्च की फसल में फूल व फल बनते समय सिंचाई करना अत्यन्त आवष्यक हैं| इस स्थिति में सिंचाई न करने पर मिर्च के फल व फूल छोटी अवस्था में गिर जाते हैं| इसके साथ ही मिर्च की फसल में पानी नही रूकने देना चाहिए|

मल्चिंग का प्रयोग
मिर्च फसल की आधुनिक खेती में सिंचाई के लिए ड्रिप पद्धति लगायी जा रही है और भूमि से नमीं की हानि रोकने के लिए मल्चिंग का उपयोग किया जाता हैं| मल्चिंग काफी पुरानी पद्धति है| इसमें किसान खेत की नमी बचाने का प्रयत्न करते हैं| पहले किसान खेत में सूखे पत्ते, भूसे इत्यादि के द्वारा नमी बचाने का प्रयत्न करते थे| आधुनिक कृषि में सूखे पत्ते, भूसे इत्यादि के स्थान पर प्लास्टिक शीट का इस्तेमाल करते हैं| खरपतवार नियंत्रण के लिए 30 माइक्रोन मोटाई वाली अल्ट्रावायलेट रोधी प्लास्टिक मल्चिंग शीट का प्रयोग किया जाता हैं| जिससे खरपतवार प्रबंधन के साथ-साथ कम सिंचाई जल के उपयोग से बेहतर उत्पादन लिया जा सकता हैं|

मल्चिंग के लाभ- मल्चिंग के उपयोग से पानी की बचत, निंदाई-गुड़ाई के खर्च की बचत होती है, मिर्च के उत्पादन व गुणवत्ता में वृद्धि होती हैं| निम्नतम सिंचाई व्यवस्था होने पर भी लाभ लिया जा सकता हैं|

फर्टीगेशन तकनीक द्वारा पोषक तत्व प्रबंधन- मिर्च के पौधे, जिनको ऊठी हुई क्यारी पर लगाया गया हो, ड्रिप सिंचाई व्यवस्था का उपयोग करें और जल विलेय उर्वरकों जैसे 19:19:19 को सिंचाई जल के साथ ड्रिप में देने से उर्वरक की बचत के साथ साथ उसकी उपयोग क्षमता में भी वृद्धि होती है तथा पौधों को आवष्यकतानुसार व शीघ्र पोषक तत्व उपलब्ध होने से उत्पादन तथा गुणवत्ता दोनों में वृद्धि होती है|

मिर्च में पादप वृद्धि हार्मोन्स का प्रयोग

मिर्च की फसल में प्लैनोफिक्स 10 पी पी एम का पुष्पन के समय तथा उसके 3 सप्ताह बाद छिड़काव करने से शाखाओं की संख्या में वृद्धि होती है एवं फल अधिक लगते हैं | तथा रोपाई के 18 एवं 43 दिन के बाद ट्राई केटेनॉल १ पी पी एम की ड्रेन्चिंग करने से पौधों की अच्छी वृद्धि होती है 
जिब्रेलिक एसिड 10-100 पी पी एम सांद्रता को घोल के फल लगने के बाद छिड़काव करने से फल ज्यादा लगते हैं |

पोषक तत्व प्रबंधन
मिर्च की फसल में उर्वकों का प्रयोग मिटटी परीक्षण के आधार पर करें| सामन्यतः एक हेक्टेयर क्षेत्रफल मे 25 से 30 टन गोबर की पूर्णतः सड़ी हुयी खाद या 5 से 6 टन वर्मीकंपोस्ट खेत की तैयारी के समय मिलायें| नत्रजन 120 से 150 किलोग्राम, फास्फोरस 60 किलोग्राम तथा पोटाष 80 किलोग्राम का प्रयोग करें|

पादप नियामक (हार्मोन) का प्रयोग– फुल आते समय 0.25 मिलीलीटर नैथलिन एसिटिक एसिड (एन ए ए) प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर छिड़काव करने से पुष्पों के झड़ने में कमी आती है और उत्पादन में लगभग 15 से 20 प्रतिशत तक बढ़ जाता है| 400 पी पी एम प्रति लीटर पानी में इश्रेल का घोल बनाकर छिड़काव करने से ग्रीष्म व शीतकालीन फसलों की उत्पादन बढ़ता हैं|

खरपतवार प्रबंधन

सामान्यतः मिर्च मे पहली निंदाई 20 से 25 और दूसरी निंदाई 35 से 40 दिन पश्चात करें या इसके लिए निदाई-गुड़ाई यंत्र का भी इस्तेमाल किया जा सकता है| हाथ से निदाई या यंत्र को ही प्राथमिकता दें, जिससे खरपतवार नियंत्रण के साथ साथ मृदा नमी का भी संरक्षण हो मल्चिंग का प्रयोग करें| यदि खरपतवारनाशी से नियंत्रित करना चाहते है, तो 300 ग्राम आक्सीफ्ल्यूओरफेन का पौध रोपण से ठीक पहले छिड़काव 600 से 700 लीटर पानी घोलकर प्रति हेक्टेयर छिडकाव करें|

मिर्च का भण्डारण  – हरी मिर्च के फलों को 7-10 से. तापमान तथा 90-95 प्रतिशत आर्द्रता पर 14-21 दिन तक भंण्डारीत किया जा सकता है । भण्डारण हवादार वेग मे करे । लाल मिर्च को 3-10 दिन तक सूर्य की तैज धुप मे सुखा कर 10 प्रतिशत नमी पर भण्डारण करे ।

प्रमुख कीट एवं रोकथाम
सफेद लट– इस कीट की लटें पौधों की जड़ों को नुकसान पहुँचाती हैं और इससे फसल को काफी हानि होती है| प्रकोपित क्षेत्र में फसल पूर्णतया नष्ट हो जाती है|

रोकथाम– फोरेट 10 जी या कार्बोफ्यूरान 3 जी 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से रोपाई से पूर्व जमीन में मिला देना चाहिये|

सफेद मक्खी, पर्ण जीवी (थ्रिप्स), हरा तेला व मोयला- ये कीट पत्तियों और पौधों के कोमल भाग से रस चूसकर फसल को काफी नुकसान पहुँचाते हैं|

रोकथाम– फास्फोमिडॉन 85 एस एल 0.3 मिलीलीटर या मैलाथियान 50 ई सी या मिथाइल डिमेटोन 25 ई सी एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से छिड़के| 15 से 20 दिन बाद आवश्यकतानुसार छिड़काव दोहरायें|

मूल ग्रन्थि (सूत्र कृमि)- इसके प्रकोप से पौधों की जड़ों में गांठे बन जाती हैं एवं पौधे पीले पड़ जाते हैं| पौधों की बढ़वार रूक जाती है, जिससे पौधों के विकास में कमी हो जाती है|

रोकथाम- पौध रोपण के समय पौधों की रोपाई के स्थान पर 25 किलोग्राम कार्बोफ्यूरान 3 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से भूमि में मिलावें या पौधों की जड़ों को एक मिलीलीटर फास्फोमिडॉन 85 एस एल प्रति लीटर पानी के घोल में आधा घंटा तक भिगो कर खेत में रोपाई करें|

प्रमुख रोग एवं रोकथाम
आर्दगलन (डेम्पिंग ऑफ)- रोग का प्रकोप पौधे की छोटी अवस्था में होता है| जमीन की सतह पर स्थित तने का भाग काला पड़ कर कमजोर हो जाता है और नन्हें पौधे गिरकर मर जाते हैं|

रोकथाम- बीज को बुवाई से पूर्व थाइरम या केप्टान 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर बोयें| नर्सरी में बुवाई से पूर्व थाइरम या केप्टान 4 से 5 ग्राम प्रति वर्गमीटर की दर से मिलावें| नर्सरी, आस पास की भूमि से 4 से 6 इंच उठी हुई भूमि में बनावें|

छाछया- रोग के प्रकोप में पत्तियों पर सफेद चूर्णी धब्बे दिखाई देते हैं और अधिक रोग ग्रसित पत्तियाँ पीली पड़कर झड़ जाती हैं|

रोकथाम– केराथियॉन एल सी 1 मिलीलीटर या केलेक्सिन एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के घोल का छिड़काव करें व आवश्यकतानुसार 15 दिन अन्तराल पर दोहरावें|

श्याम वर्ण (एन्थ्रोक्लोज)- पत्तियों पर छोटे-छोटे काले धब्बे बन जाते है और पत्तियाँ झड़ने लगती हैं| उग्र अवस्था में शाखायें शीर्ष से नीचे की तरफ सूखने लगती है| पके फलों पर भी बीमारी के लक्षण दिखाई देते हैं|

रोकथाम- मैन्कोजेब या जाईनब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल के 2 से 3 छिड़काव 15 दिन के अन्तराल पर करें|

जीवाणु धब्बा रोग- रोग के प्रकोप से पत्तियों पर छोटे छोटे जलीय धब्बे बनते हैं तथा बाद में गहरे भूरे से हाल रंग के उठे हुए दिखाई देते हैं| अन्त में रोगग्रस्त पत्तियाँ पीली पड़कर झड़ जाती है|

रोकथाम- स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 200 मिलीग्राम, या कॉपर आक्सीक्लोराइड 3 ग्राम और स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 100 मिलीग्राम प्रति लीटर पानी के घोल का छिड़काव आवश्यकतानुसार 15 दिन के अन्तर पर करें|

पर्णकुंचन व मोजेक (विषाणु रोग)- पर्णकुंचन रोग के प्रकोप से पत्ते सिकुड़ कर मुड़ जाते हैं, छोटे रह जाते हैं व झुर्रियां पड़ जाती हैं| मोजेक रोग के कारण पत्तियों पर गहरे व हल्का पीलापन लिये हुए धब्बे बन जाते हैं| रोगों के प्रसारण में कीट सहायक होते हैं|

रोकथाम

  1. रोग ग्रसित पौधो को उखाड़ कर नष्ट करें, रोग को आगे फैलने से रोकने हेतु डाइमिथोएट 30 ई सी एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करना चाहिये|
  2. नर्सरी तैयार करते समय बुवाई से पूर्व कार्बोफ्यूरॉन 3 जी 8 से 10 ग्राम प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से भूमि में मिलावें|
  3. पौध रोपण के समय स्वस्थ पौध काम में लेवें|
  4. पौध रोपण के 10 से 12 दिन बाद मिथाइल डिमेटोन 25 ई सी एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें व आवश्यकतानुसार 20 दिन बाद दोहरायें| फूल आने के बाद उपरोक्त कीटनाशी के स्थान पर मैलाथियॉन एक मिली लीटर प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़के|

फल तुड़ाई

  1. हरी मिर्च रोपाई के लगभग 85 से 95 दिन बाद तोड़ने योग्य हो जाती है| इस तरह 1 से 2 सप्ताह के अन्तर पर पके फलों को तोड़ा जाता है| इस प्रकार 8 से 10 बार तोड़ाई की जाती है|
  2. सूखी मिर्च के लिये फलों को 140 से 150 दिन बाद जब मिर्च का रंग लाल हो जाता है तब तोड़ा जाता है| लेकिन बार बार मिर्च तोड़ने से फलन अधिक होता है|
  3. पके फलों को 8 से 10 दिन तक धूप में सुखाया जाता है| आधा सूख जाने पर फलों की सायंकाल के समय एक ढेरी में इक्कट्ठा करके दबा दिया जाता है| जिससे की मिर्च चपटी हो जाए तथा सूखने में आसानी रहती है| बड़े पैमाने पर मिर्ची को 53 से 54 सेंटीग्रेट तापमान पर 2 से 3 दिन तक सुखाया जाता है|

पैदावार

  1. उपरोक्त वैज्ञानिक विधि से खेती करने के बाद अनुकूल परिश्थितियों में हरी मिर्च की सामान्य किस्मों से औसत उपज 125 से 250 क्विंटल और संकर किस्मों से 250 से 400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज प्राप्त की जा सकती है|
  2. सूखी मिर्च की सामान्य किस्मों से 25 से 30 किंवटल और संकर किस्मों से 30 से 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त की जा सकती है|

मिर्च की खेती में खर्च कैसे कम करें

मिर्च की खेती काफी खर्चीली खेती मानी जाती है| इसका मुख्य कारण मिर्च की खेती में रासायनिक उर्वरक व दवाओं पर किसानों की अत्यधिक निर्भरता है| मिर्च की फसल में खर्च कम करने के लिए किसानों को रासायनिक उर्वरक व दवाओं के संतुलित उपयोग के साथ इनके जैविक विकल्पों जैसे- केंचुआ खाद, नीम की खली, गोबर की खाद, हरी खाद, बायोपेस्टीसाइड़, नीम तेल आदि का उपयोग भी करना होगा| किसान खरपतवारनाशक रसायनों का उपयोग न करके निंदाई गुड़ाई करें तो भी खर्च में कमी आयेगी| इसके अलावा कीट एवं रोग नियंत्रण के लिए समेकित नाशीजीव तकनीक अपनानी चाहिए|

उत्पादन बढ़ाने के उपाय

  1. प्रमाणित बीज का उपयोग करें|
  2. मिर्च की फसल में जल निकास की उचित व्यवस्था करें|
  3. कार्बन्डाजिम फफूदनाशी से पौधशाला के स्थान को उपचारित करें|
  4. जिस खेत में पहले मिर्च, सोयाबीन, मूंग, भिण्डी की फसल ली हो उसमें पौधशाला तैयार न करें|
  5. पौधशाला के चारों ओर कपड़े या जाली से बाउण्ड्री बना दें, कपड़े या जाली पर गौमूत्र/नीम का तेल/सड़ी छाछ से हर 4 से 5 दिन पर छिड़काव करते रहें|
  6. इससे पौधशाला की कई प्रकार के कीटों व जानवरों से बचाया जा सकता है|
  7. वायरस से ग्रसित पौधों को उखाडकर नष्ट कर दें|
  8. उर्वरकों का प्रयोग मिटटी परिक्षण के आधार पर करें|
  9. रासायनिक उर्वरको व दवाईयों का संतुलित मात्रा में उपयोग करें|
  10. समय पर फल तुड़ाई करें|
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