जैविक खेती हानिकारक कीट का दुश्मन कीट बनाकर फसल की सुरक्षा करती है

जैविक खेती एक वैकल्पिक कृषि प्रणाली है जो 20वीं सदी में प्रारम्भ हुई। इसका उद्देश्य खेती करने के तरीकों में बदलाव करना है। यह वह विधि है जो संश्लेषित उर्वरकों एवं संश्लेषित कीटनाशकों के अप्रयोग या न्यूनतम प्रयोग पर आधारित है। इस प्रकार की खेती आज विभिन्न जैविक कृषि संगठनों द्धरा विकसित की जा रही है। जैविक खेती मूल रूप से गोबर की खाद, हरी खाद और हड्डी खाद जैसे मूल उर्वरकों पर निर्भर करती है। यह फसल की बीमारियों को रोकने वाले करकों और फसल को हानि पहुँचाने वाले कीटों के प्रतिद्धंदी को बढ़ावा देते हैं।

जैविक खेती
जैविक खेती

कुदरती पोषण से ज़मीन की उर्वरा क्षमता बनी रहती है जिससे उत्पादन भी अच्छा खासा होता है। जैविक खेती पर्यावरण के हित में है जो हमारी आपकी सेहत के लिए भी अच्छा है। जैविक खेती से तैयार खाने की चीज़ों में जिंक और आयरन जैसे खनिज तत्त्व बड़ी मात्रा में मौजूद होते हैं। ये दोनों तत्व हमारी सेहत के लिए ज़रूरी होते हैं।

जैविक खाद्य पदार्थों पर यूरोपीय यूनियन की एक रिसर्च बताती है कि आम तौर पर मिलने वाले खाद्य पदार्थों के मुकाबले जैविक खेती के उत्पादों में 40 प्रतिशत ज्यादा एन्टी ऑक्सीडेंट पाए जाते हैं। एन्टी ऑक्सीडेंट वो तत्व हैं जो शरीर की कोशिकाओं को नुकसान करने वाले कणों से आपकी रक्षा करते हैं।सरकार ने केन्द्रीय क्षेत्र की विभिन्न योजनाओं जैसे राष्‍ट्रीय सतत कृषि मिशन के तहत देश में जैविक खेती को अपनाने के लिए राज्य सरकारों के जरिए किसानों को वित्तीय सहायता देने का प्रावधान बनाया है। इसमे बागवानी के यकीकृत विकास का मिशन, राष्‍ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन और कृषि विकास योजना भी शामिल हैं।

वर्तमान में भारत में प्रमाणित जैविक खेती के तहत लगभग 45 लाख हैक्टेयर क्षेत्र है और संख्या तेजी से बढ़ रही है। वैश्विक जैविक बाजार वर्तमान में लगभग 65 अरब अमेरिकी $ पर खड़ा है और 5 अरब डॉलर से अधिक की एक मजबूत वार्षिक दर से बढ़ रहा है। खाद्य उत्पादों अर्थात् बासमती चावल, दाल, शहद, चाय, मसाले, कॉफी, तिलहन, फल, प्रसंस्कृत खाद्य, अनाज, हर्बल दवाओं और उनके मूल्य वर्धित उत्पादों की सभी किस्मों सहित प्रमाणित जैविक उत्पादों को भारत में उत्पादित कर रहे हैं। इसके अलावा खाद्य क्षेत्र कार्बनिक कपास फाइबर, वस्त्र, सौंदर्य प्रसाधन, कार्यात्मक खाद्य उत्पादों, शरीर की देखभाल उत्पादों आदि से भी उत्पादन कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश के जौनपुर, सुल्तानपुर, फैजाबाद, मेरठ, बागपत, फरुर्खाबाद सहित विभिन्न जिलों में जैविक खेती को लेकर किसानों में प्रतिस्पर्धा शुरू हो गई है।

इसी तरह राजस्थान में खेती का रकबा भले कम हो, लेकिन इस राज्य के किसान खेती को लेकर काफी गम्भीर हैं। विपरीत परिस्थितियों के बाद भी राजस्थान में विभिन्न तरह की फसलें ली जा रही है। अब किसान जैविक खेती को लेकर काफी जागरुक हो गए हैं। कृषि विभाग के आँकड़ों की मानें तो राज्य के बांसवाड़ा, झालावाड़, अलवर, श्रीगंगानगर सहित आस-पास के इलाके में जैविक खेती को लेकर गम्भीर हैं। राज्य सरकार भी इस दिशा में किसानों का आगे बढ़ा रही है। जैविक खेती करने वाले किसानों को पुरस्कृत भी किया जा रहा है।

म.प्र. में सर्वप्रथम 2001-02 मेंं जैविक खेती का अन्दोलन चलाकर प्रत्येक जिले के प्रत्येक विकास खण्ड के एक गांव मे जैविक खेती प्रारम्भ कि गई और इन गांवों को ”जैविक गांव” का नाम दिया गया । इस प्रकार प्रथम वर्ष में कुल 313 ग्रामों में जैविक खेती की शुरूआत हुई। इसके बाद 2002-03 में द्वितीय वर्ष मे प्रत्येक जिले के प्रत्येक विकासखण्ड के दो-दो गांव, वर्ष 2003-04 में 2-2 गांव अर्थात 1565 ग्रामों मे जैविक खेती की गई। वर्ष 2006-07 में पुन: प्रत्येक विकासखण्ड में 5-5 गांव चयन किये गये। इस प्रकार प्रदेश के 3130 ग्रामों जैविक खेती का कार्यक्रम लिया जा रहा है। मई 2002 में राष्ट्रीय स्तर का कृषि विभाग के तत्वाधान में भोपाल में जैविक खेती पर सेमीनार आयोजित किया गया जिसमें राष्ट्रीय विशेषज्ञों एवं जैविक खेती करने वाले अनुभवी कृषकों द्वारा भाग लिया गया जिसमें जैविक खेती अपनाने हेतु प्रोत्साहित किया गया। प्रदेश के प्रत्येक जिले में जैविक खेती के प्रचार-प्रसार हेतु चलित झांकी, पोस्टर्स, बेनर्स, साहित्य, एकल नाटक, कठपुतली प्रदर्शन जैविक हाट एवं विशेषज्ञों द्वारा जैविक खेती पर उद्बोधन आदि के माध्यम से प्रचार-प्रसार किया जाकर कृषकों में जन जाग्रति फैलाई जा रही है।

जैविक खेती से होने वाले लाभ

– कृषकों को होने वाले लाभ

– भूमि की उत्पादन क्षमतां में वृद्धि हो जाती है।

– सिचाईं अंतराल में वृद्धि हो जाती है।

– रासायनिक खाद पर निर्भरता कम होने से लागत में कमी आती है।

– फसलों की उत्पादकता में वृद्धि होती है।

जैविक खेती
जैविक खेती

मिट्टी की गुणवत्ता मे सुधार-

मिट्टी की गुणवत्ता नींव है जिस पर जैविक खेती आधारित है। खेती के तरीकों से कोशिश है की मिट्टी की उर्वरता का निर्माण और रखरखाव बना रहे। इसके लिए एकाधिक फसले उगाना, फसलों का परिक्रमण, जैविक खाद और कीटनाशक और न्यूनतम जुताई आदि तरीके हैं। मिट्टी मे मूल जैविक तत्त्व प्राकृतिक पौधों के पौष्टिक तत्त्वों से बना है, जो की हरी खाद, पशु का खाद, काम्पोस्ट और पौधो के अवशेष से बना है। ऐसी सूचना है की मिट्टी में जैविक खेती के दौरान कम घनत्व, उच्च जल धारण क्षमता, उच्च माइक्रोबियल और उच्च मिट्टी श्वसन गतिविधिया होती है। यह संकेत करता है की जैविक खेती मे मायक्रोबियल गतिविधियों से फसलो को ज्यादा मात्रा मे पोषक तत्त्व प्रदान होते है।

फसलों की पैदावार और आय-

नागपुर मे जैविक कपास का क्षेत्र परिक्षण से पता चलता है की रूपांतर की अवधि के दौरान कपास की उपज पारंपरिक तरीके, उर्वरक और कीटनाशक के इस्तेमाल और एकीकृत फसल प्रबंधन (50% प्रतिशत जैविक और अजैविक के उपयोग से) तुलना में कम थी परन्तु तीसरे वर्ष से कपास की पैदावार बढ़ने लगी. कपास की पैदावार खेती के चौथे वर्ष से, जैविक खेती से 898 पारंपरिक खेती से 623 और मिश्रित खेती के तरीके से 710 किलोग्राम प्रति हेक्टर होने लगी। सोयाबीन की पैदावार बाकि दो पद्धति की तुलना मे जैविक पद्धति से अधिकतम थी,देश के 1050 विभिन्न क्षेत्रो मे राष्ट्रिय परियोजना विकास और जैव उर्वरक   के प्रयोग के तहत यह प्रमाणित किया गया की फसलो की पौधे रोपण मे 5 प्रतिशत वृद्धि हुई, फलो की 7 प्रतिशत वृद्धि हुई, गेहू और गन्ने की फसलो मे 10 प्रतिशत की वृद्धि, बाजरा और सब्जियों मे 10 प्रतिशत वृद्धि, रेशा और मसाले मे 11 प्रतिशत की वृद्धि, तिलहन और फुल मे 14 प्रतिशत की वृद्धि, तंबाकू मे 15 प्रतिशत की वृद्धि हुई।

कीट की संख्या मे घटाव-

केन्द्रीय कपास अनुसंधान नागपुर, जैविक कपास का कीट पर असर के अध्यन के अनुसार जैविक खेती में अमेरिकेन बाऊवोर्म  के अंडे, लार्वा और वयस्क की संख्या कम होती है। पारंपरिक खेती की तुलना में देश में  जैव -नियंत्रण तरीके जैसे की नीम आधारित कीटनाशक उपलब्ध है। स्वदेशीय तकनिकी उत्पाद जैसे की, पंच्गव्य (पाँच उत्पाद जो की गाय उत्पत्ति पर आधारित है) जो की कृषि विज्ञानं विश्वविद्यालय, बैगलोर मे परीक्षण किया गया उसके अनुसार इसमे टमाटर मे विल्ट रोग का नियंत्रण प्रभावशाली होता है। तना छेदक, पत्ती मोडनेवाला, व्होर्ल मेग्गॉट तथा बीपीएच जैसे कीट चावल की फसल को गम्भीर नुकसान पहुंचाते हैं जिससे उपज में भारी कमी होती है। जैविक-कीटनाशक तना छेदक, पत्ती मोडनेवाला, व्होर्ल मेग्गॉट तथा बीपीएच के नियंत्रण के लिए बहुत प्रभावी पाया गया है।

पर्यावरणक लाभ –

– भूमि के जल स्तर में वृद्धि होती है।

– मिट्टी, खाद्य पदार्थ और जमीन में पानी के माध्यम से होने वाले प्रदूषण मे कमी आती है।

– कचरे का उपयोग, खाद बनाने में, होने से बीमारियों में कमी आती है ।

– फसल उत्पादन की लागत में कमी एवं आय में वृद्धि ।

– अंतर्राष्ट्रीय बाजार की स्पर्धा में जैविक उत्पाद की गुणवत्ता का खरा उतरना।

जैविक खेती की विधि रासायनिक खेती की विधि की तुलना में बराबर या अधिक उत्पादन देती है अर्थात जैविक खेती मृदा की उर्वरता एवं कृषकों की उत्पादकता बढ़ाने में पूर्णत: सहायक है। वर्षा आधारित क्षेत्रों में जैविक खेती की विधि और भी अधिक लाभदायक है । जैविक विधि द्वारा खेती करने से उत्पादन की लागत तो कम होती ही है, इसके साथ ही कृषक भाइयों को आय अधिक प्राप्त होती है तथा अंतराष्ट्रीय बाजार की स्पर्धा में जैविक उत्पाद अधिक खरे उतरते हैं।

 

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