इनके प्रयोग से धान की फसल रहेगी निरोग

धान-की-उन्नत-उत्पादन-तकनीक :

बीते कुछ दिनों से अच्छी बारिश हो रही है, जिसके बाद किसानों ने धान की रोपाई जोर-शोर से शुरू कर दी है। इस बार मौसम विभाग का भी अनुमान है कि बारिश अच्छी होगी, जो कि धान की फसल के लिए अच्छी खबर है। लेकिन इसके बावजूद किसानों को फसल के प्रति विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है। जरा सी भी लापरवाही से फसल रोगों की चपेट में आ सकती है। ऐसे में सारी मेहनत पर पानी फिर सकता है। कारण धान की फसल में लगने वाले खैरा सहित सफेदा व झुलसा रोग तो दीमक व जड़सुंडी कीट से देखते ही देखते फसल बर्बाद हो जाती है।

हालांकि अभी इन रोगों और किटों का कोई खतना नहीं है, लेकिन भविष्य में किसान इन खतरों से सावधान रहे इस लिए हम अभी से आपको बता रहे हैं कि किस रोग के क्या लक्षण होते हैं और उनसे निबटा कैसे जा सकता है।

धान में लगने वाले रोग-कीट उसके लक्षण और उपचार

खैरा रोग : जिंक की कमी के चलते धान फसल में लगने वाले इस रोग में फसल की पत्तियां पीली पड़ जाती हैं। साथ ही उसपर कत्थई रंग के धब्बे दिखाई पड़ने लगते हैं।

उपचार : किसान प्रति हेक्टेयर 20 किलो यूरिया व पांच किलो जिंक सल्फेट का छिड़काव कर सकते हैं। यदि पानी के साथ छिड़काव करना है तो दो किलो यूरिया व पांच किलो जिंक पर्याप्त होगा। यदि यूरिया का छिड़काव पहले किया जा चुका है तो ढाई किलो चूने को आठ सौ लीटर पानी में भिगो दें। फिर उस पानी में पांच किलो जिंक मिलाकर छिड़काव करें लाभ हासिल होगा।

सफेदा रोग : लौह तत्व की कमी से लगने वाले इस रोग में फसल की पत्तियां सफेद पड़ने लगती हैं। साथ ही सूखने लगती हैं।

उपचार : इस तरह के लक्षण दिखाई पड़ने पर पांच किलो फेरस सल्फेट को 20 किलो यूरिया के साथ मिलाकर छिड़काव करना लाभकारी होगा।

झुलसा रोग : इस रोग में पौधों की बढ़वार रुक जाती है। खेत में जगह-जगह पौधे बढ़ते नहीं दिखाई पड़ते।

उपचार : ऐसे लक्षण दिखने पर स्टेप्टोसाइक्लीन दवा चार ग्राम को पांच सौ ग्राम कापर आक्सीक्लोराइड के साथ आठ सौ से एक हजार लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना लाभकारी होगा।

दीमक : दीमक का प्रकोप फसल को पूरी तरह नष्ट कर देता है।

उपचार : इसका असर दिखाई पड़ने पर तार ताप हाइड्रोक्लोराइड चार से छह किलो प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव किया जा सकता है। इसी तरह पौध उखाड़ने पर यदि उसमें चावल की तरह सफेद कीड़े दिखाई पड़े तो वह जलसुंडी कीट का का प्रकोप होता है। इससे बचाव के लिए फोरेट 10 जी दवा आठ से 10 किलो एक हजार लीटर पानी में घोल तैयार कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव किया जा सकता है।

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