गाजर उत्पादन तकनीक

गाजर उत्पादन तकनीक
गाजर उत्पादन तकनीक

गाजर उत्पादन तकनीक

गाजर का जड़ वाली सब्जियों में प्रमुख स्थान है। इसे संपूर्ण भारत में उगाया जाता है। इसका उपयोग सलाद, अचार, हलुआ आदि बनाने में किया जाता है। गाजर में विटामिन ए’’ अधिक मात्रा में पाया जाता है।

जलवायु

गाजर को विभिन्न प्रकार की भूमियों में उगाया जा सकता हैं। लेकिन, अच्छी उपज के लिए उचित जल निकास वाली भुर-भुरी दोमट भूमि सर्वोत्तम रहती है

गाजर की उन्नत किस्में
नैन्टिस
वंशावलीयू.एस.ए. चयनित
अनुमोदन वर्षकेन्द्रीय प्रजाति विमोचन समिति-1985
अनुमोदित क्षेत्रसम्पूर्ण भारत के लिए
औसत उपज120 कुन्तल/हेक्टेयर
विशेषताएंहरे पत्तों के साथ लघु शीर्ष, उत्तम आकृति की मूसली, छोटा, नारंगी,छोटी-पतली पुच्छ के साथ बेलनाकार जड़, नारंगी रंग का मधुर गूदा।
पूसा मेघाली
वंशावलीपूसा केसरगनैन्टीस चयन
अनुमोदन वर्षकेन्द्रीय प्रजाति विमोचन समिति-1994
अनुमोदित क्षेत्रमध्यप्रदेष एवं महाराष्ट्र
औसत उपज250 कुन्तल/हेक्टेयर
विशेषताएंअगेती,कोर सहित नारंगी मूसली, लघु शीर्ष, उत्तम आकृति, मैदानी भागों में बीजोत्पादन, अगेती बुवाई हेतु उपयुक्त, 100-120 दिनों में तैयार।
पूसा रुधिर
वंशावलीस्थानीय चयन
जारी होने का वर्षराज्य प्रजाति विमोचन समिति-2008
अनुमोदित क्षेत्रदिल्ली एवं राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र
औसत उपज300 कुन्तल/हेक्टेयर
विशेषताएंलम्बी स्वरंगी कोर सहित लाल मूसली, थोड़ी त्रिकोण आकृति लिए, मध्य सितम्बर से अक्टूम्बर तक बुवाई योग्य,मध्य दिसम्बर में मूसली तैयार,
पूसा आंसिता
वंशावलीस्थानीय चयन
जारी होने का वर्षराज्य प्रजाति विमोचन समिति-2008
अनुमोदित क्षेत्रदिल्ली एवं राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र
औसत उपज250 कुन्तल/हेक्टेयर
विशेषताएंलम्बी स्वरंगी कोर सहित काली मूसली, सितम्बर से अक्टूम्बर तक बुवाई के लिए उपयुक्त, दिसम्बर-जनवरी में मूसली तैयार,90-110 दिनों में तैयार।
अन्य उन्नत किस्में
पूसा केसर, पूसा यमदग्नि, चैटेनी, इंपरेटर एवं संकर किस्मे आदि।

नेन्टीस

पूसा आसींता

पूसा रुधिर

भूमि
सभी प्रकार की भूमि उपयुक्त रहती है। लेकिन रेतीली दोमट भूमि अधिक उपयुक्त रहती है। इसके लिए सर्वोत्तम पी.एच. 6.5 या इसके आसपास माना गया है।
भूमि की तैयारी
प्रथम जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करने के बाद 2-3 बार कल्टीवेटर चलाकर खेत को समतल कर लें।
खाद एवं उर्वरक

गोबर की खाद या कम्पोस्ट 150 क्ंिवटल, नत्रजन 75 किलो प्रति हेक्टेयर आवष्यक है। गोबर की खाद, स्फुर तथा पोटाष भूमि की तैयारी के समय तथा नत्रजन बुवाई के 15 तथा 30 दिनों बाद देना चाहिए।

विकल्प-1

विकल्प-2

मात्रा कि.ग्रा./हे.

मात्रा कि.ग्रा./हे.

यूरियासु. फॉ.एम.ओ.पी.डी.ए.पी.यूरियाएम.ओ.पी.
217438117152158117
बोने का समय
गाजर की बुवाई उसकी जातियों के ऊपर निर्भर करती हैं। मध्य अगस्त से नवम्बर तक का समय इसकी बुवाई के लिए उपयुक्त रहता है।
बीज की मात्रा
5-6 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर आवष्यक होता है।
बोने की विधि

गाजर की बुवाई समतल क्यारियों में या डोलियों पर की जाती है। पंक्तियों और पौधों की आपसी दूरी क्रमषः 45 ग 7.5 सेमी. रखना चाहिए। क्यारी में बुआई लिए क्यारियों के बीच में गाजर के बीज का छींटकर बोते हैं। तथा बाद में छॅटाई की जाती है।

सिंचाई
पहली सिंचाई बीच बोने के तुरन्त बाद करें, तदुपरान्त 4-5 दिन बाद दूसरी हल्की सिंचाई करनी चाहिए। बाद में 10-15 दिन के अंतर में सिंचाई करनी चाहिए।
निदाई-गुड़ाई

यदि खेत मे खरपतवार उग आये हों तो आवष्यकतानुसार उन्हें निकालते रहना चाहिए। रासायनिक खरपतवार नाषक जैसे पेन्डिमीथेलिन 30 ई.सी. 3.0 कि.ग्रा. 1000 ली.पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के 48 घंटे के अन्दर प्रयोग करने पर प्रारम्भ के 30-40 दिनों तक खरपतवार नहीं उगते हैं। खरपतवारों के नियंत्रण के लिए खेत की 2-3 बार निदाई-गुड़ाई करें। दूसरी निदाई-गुड़ाई करने के समय पौधों की छटनी कर दें।

कीट नियत्रण
गाजर की बीविल:- इस कीट के नियंत्रण के लिए मैलाथियान 50 ई. सी. की 2 मिली. मात्रा को एक लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
रागों की रोकथाम
आर्द्रगलन:- इस रोग के कारण बीज के अंकुरित होते ही पौधे संक्रमित हो जाते है। तने का निचला भाग जो भूमि की सतह से लगा रहता है, सड़ जाता है। फलस्वरूप पौधे वहीं से टूटकर गिर जाते हैं। इस रोग की रोकथाम के लिए बीज को बोने से पूर्व कार्बेन्डाझीम 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें।
जीवाणु मृदुगलन
इस रोग का प्रकोप विषेष रूप से गूदेदार जड़ों पर होता है, जिसके कारण जड़े सड़ने लगती है, ऐसी भूमियों में जिनमें जल निकास की उचित व्यवस्था नहीं होती है यह रोग अधिक लगता है। इस रोग की उचित रोकथाम के लिए खेत में जल निकास का उचित प्रबंध करना चाहिए तथा रोग के लक्षण दिखाई देने पर नाइट्रोजन धारी उर्वरकों की टॉप ड्रेसिंग न करें।
खुदाई

गाजर की खुदाई का समय विशेष रूप से उसकी उगाई जाने वाली जातियों पर निर्भर करता है। वैसे जब गाजर की जड़ों के ऊपरी भाग 2.5-3.5 सेमी. व्यास के हो जाये तब उनकी खुदाई कर लेनी चाहिए।

उपज

गाजर की औसत उपज लगभग 220 से 225 किवंटल प्रति हेक्टेयर होती है। जो कि किस्मों के उपर निर्भर करती है।

गाजर का आर्थिक विशलेषण लागत प्रति हेक्टेयर
विवरणखर्चा(रु)

खेत की तैयारी, जुताई एवं बुवाई का खर्चा

2000

बीज की लागत का खर्चा

3000

खाद एवं उर्वरक पर व्यय

6500

निंदा नियंत्रण पर व्यय

4000

कीट व्याधि नियंत्रण पर व्यय

1500

सिंचाई का व्यय

4000

खुदाई एवं सफाई पर व्यय

8000

अन्य

2000

कुल

31000
आय की गणना
औसत उपज (क्वि.हे.)बिक्री दरसकल आयलागतशुद्ध आय
120800960003100065000
बिक्री दर बाजार भाव पर निर्भर रहती है जो समय-समय पर बदलती है।

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