कीट प्रबंधन – मक्का


कीट कॉलाम्बा लिविया
प्रचलित नाम ब्लू कॉक पीजन पैराकीट क्रो
क्षति

सबसे ज्यादा नुकसान पक्षियों द्वारा दानों को खाने से होता है।
बोये हुए दाने पक्षियों द्वारा खा लिये जाते है।
दाने पकने समय भी क्षतिग्रस्त हो जाते है।
नई और कोमल शाखायें भी क्षतिग्रस्त हो जाती है।

आई.पी. एम

फसल की रोपाई जल्दी करें।
पक्षियों के घोसलों को खेत एवं आसपास से नष्ट करें।
पक्षियों को डराने के लिए पुतले खेत में बनाकर रखें।
पटाखें फोड़ें।
सूरजमुखी की खेती करें।

नियंत्रण

रसायनिक कीटनाशकों का उपयोग उस समय करना चाहिए जब पक्षियों की संख्या आर्थिक देहली स्तर को पार कर ले।
भुट्टों को कपड़े से ढकने से भी पक्षियों का आक्रमण कम किया जा सकता है।
खाली बर्तनों को बजाने से और ड्रमों को पीटने से भी पक्षियों का आक्रमण कम किया जा सकता है।
पटाखें चलाने से भी पक्षियों का आक्रमण कम किया जा सकता है।
परावर्तक का उपयोग करने से भी पक्षी दूर जाते है।

कीट रोपालोसिफम माइडिस

प्रचलित नाम माहू
क्षति

हरे काले रंग के माहू कीट झुन्डों में रहते है ।
इस कीट का आक्रमण फूल के समय अधिक होता है तथा ये कोमल भागों का रस चूसकर नुकसान पहुंचाते है।
रस चूसने से पत्तियां पीली पड़ जाती है तथा पराग भी झड़ता है।

आई.पी. एम

पानी की कमी की स्थिति न आने दें।
खेत का समय समय पर निरीक्षण करें।
नियंत्रण के उपाय शुरूवात की अवस्था में करें।

नियंत्रण

मिथाइल डिमेटॉन 25 ई.सी. अथवा डाईमेथोएट 30 ई.सी. का 1 मि.ली. प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
रसायनिक कीटनाशकों का उपयोग उस समय करना चाहिए जब कीटों की संख्या आर्थिक देहली स्तर को पार कर ले।
मोनोक्रोटोफॉस का प्रारंभिक अवस्था में छिड़काव करने से लाभ मिलता है।

कीट चिलो पारटुलस

प्रचलित नाम धारीदार तना छेदक कीट
क्षति

इल्लियां हल्के हरे पीले रंग के काले सिर वाली होती है जिनके शरीर पर लम्बाई में भूरी धारियां पायी जाती है।
पूर्ण विकसित इल्ली 2.5 सेमी लम्बी होती है।
इल्लियां पहले पत्तियों को खुरच खुरच कर खाती है और बाद में इस प्रकार से छेद कर देती है कि यदि पत्ती को देखा जाये तो सुई से किये गये छेदों के समान दिखाई पड़ते है।
बाद में तने में छेदकर अन्दर प्रवेशकर उसे खाती है जिससे मृत केन्द्र बन जाता है।
इस कीट के प्रकोप से 80 प्रतिशत तक हानि आंकी गई है।

आई.पी. एम

गंगा 4, गंगा 5, गंगा सफेद 2 उत्तर भारत की प्रतिरोधक किस्में है।
डी.एच.एम. 101 दक्षिण भारत की प्रतिरोधक किस्में है।
फसल अवशेषों को नष्ट करें एवं ग्रीष्म कालीन गहरी जुताई करें ।
पूर्व फसल के अवशेष, खरपतवार एवं कीट के अन्य पोषक पौधों को उखाड कर नष्ट कर दे।

नियंत्रण

रसायनिक कीटनाशकों का उपयोग उस समय करना चाहिए जब कीटों की संख्या आर्थिक देहली स्तर को पार कर ले।
तना छेदक कीट का आर्थिक देहली स्तर 10 प्रतिशत प्रभावित पौधे होते है।
फोरेट 10 जी. या कार्बाफ्यूरान या थायोडान 7-8 कि.ग्रा. /हे की दर से पौधों की पोंगडी में डाले।
कीट का नियंत्रण करने के लिए मेटासिसटाक्स 25 ई.सी. या रोगर 35 ई.सी का 500 मि.ली. का 250 लीटर पानी प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
कार्बाफ्यूरान 35 एस.टी. 10 ग्राम /कि.ग्रा. बीज की दर से बीजोपचार करें।

कीट सेसेमिया इनफेरेन्स

प्रचलित नाम गुलाबी तना छेदक
क्षति

इस कीट की इल्लियां हल्की गुलाबी रंग की लाल भूरे सिरे वाली होती है।
ये लगभग 2.5-3 सेमी लग्बी होती है।
अण्डे से बाहर निकलने के बाद इल्ली पर्णच्छद में छेदकर तने में प्रवेश करके उसे खाती है फलस्वरूप पौधे पीले पड़ जाते है। तथा मध्य की पत्तियां सूखकर मृत केन्द्र बन जाती है।

आई.पी. एम

गंगा 4, गंगा 5, गंगा सफेद 2 उत्तर भारत की प्रतिरोधक किस्में है।
डी.एच.एम. 101 दक्षिण भारत की प्रतिरोधक किस्में है।
फसल अवशेषों को नष्ट करें एवं ग्रीष्म कालीन गहरी जुताई करें ।
पूर्व फसल के अवशेष, खरपतवार एवं कीट के अन्य पोषक पौधों को उखाड कर नष्ट कर दें।

नियंत्रण

रसायनिक कीटनाशकों का उपयोग उस समय करना चाहिए जब कीट की संख्या आर्थिक देहली स्तर को पार कर ले।
तना छेदक कीट का आर्थिक देहली स्तर 1 लार्वा प्रति पौधा होता है।
कीट का नियंत्रण करने के लिए मेटासिसटाक्स 25 ई.सी. या रोगर 35 ई.सी का 500 मि.ली. का 600 लीटर पानी प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
कार्बाफ्यूरान 3 जी. 10 कि.ग्रा/हे के हिसाब से पाेंगरी में डाले।
कार्बाफ्यूरान 35 एस.टी. 10 ग्राम /कि.ग्रा. बीज की दर से बीजोपचार करें।

कीट पल्यूशिया एक्यूटा

प्रचलित नाम पल्यूशिया
क्षति

पत्तियों का पीला होना और बाद में झड़ जाती है।

आई.पी. एम

पानी की कमी की स्थिति न आने दें।
खेत का समय समय पर निरीक्षण करें।
नियंत्रण के उपाय शुरूवात की अवस्था में करें।

नियंत्रण

डेसिस 2.8 ई.सी. 500-600 लीटर पानी के साथ प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें।

कीट मारासिनिया ट्रेपीजेलिस

प्रचलित नाम पत्ती मोड़क इल्ली
क्षति –
आई.पी. एम

खेत में साफ सफाई रखें।
फसल चक्र अपनाए।
अच्छी तरह सड़ी हुई कीट रहित खाद का उपयोग करें।

नियंत्रण

कीट का नियंत्रण करने के लिए मेटासिसटाक्स 25 ई.सी. या रोगर 35 ई.सी का 500 मि.ली. का 600 लीटर पानी प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
कार्बाफ्यूरान 3 जी. 10 कि.ग्रा/हे के हिसाब से पाेंगरी में डाले।
कार्बाफ्यूरान 35 एस.टी. 10 ग्राम /कि.ग्रा. बीज की दर से बीजोपचार करें।

कीट स्टेम फ्लाई

प्रचलित नाम तना मक्खी
क्षति

इस कीट का आक्रमण अकुंरण के बाद से ही शुरू हो जाता है तथा एक माह तक दिखाई देता है।
इसकी मेंगट,इल्ली तने में प्रवेश कर जाती है तथा पौधे के बीच का भाग सूख जाता है जिसे मृत देह कहते है।

आई.पी. एम

जुलाई के पहले सप्ताह तक बोनी कर देनी चाहिए।
उच्च बीज दर रखें एवं बाद में विरलन करें।

नियंत्रण

100 ग्राम 50 डब्लू.पी. कार्बाफ्यूरान प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से बीज उपचार करें।
बुआई के समय बीज के नीचे 10 जी. फोरेट का 10 कि.ग्रा /हे का उपयोग करें।

कीट होलोट्राइशिया स्पी.

प्रचलित नाम सफेद लट
क्षति

ये कीट पौधों की जड़ों को नुकसान पहुंचाती है।
गीली मिट्टी में 5 से 10 से.मी. और सूखी मिट्टी में 30 से 60 से.मी. तक पाये जाते है।
कीटग्रस्त पौधे सूखकर मुरझा जाते है और आसानी से उखड़ जाते है।

आई.पी. एम

गहरी जुताई करें।
अच्छी तरह से सड़ी हुई खाद का उपयोग करें।

नियंत्रण

10 जी. फोरेट 10 कि.ग्रा./हे की दर से बोनी के पहले उपयोग करें।

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