ISRO का सबसे भारी रॉकेट GSLV-Mk 3 लॉन्च, 200 हाथियों जितना वजन

श्रीहरिकोटा- इसरो के सबसे ताकतवर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल GSLV मार्क 3 डी-1 ने सोमवार को पहली उड़ान भरी। इसका वजन 200 हाथियों के बराबर है। इसे आंध्र प्रदेश के सतीश धवन स्पेस सेंटर से छोड़ा गया। रॉकेट ने एक हाथी के बराबर वजनी देश के सबसे भारी कम्युनिकेशन सैटेलाइट GSAT-19 को 16 मिनट में स्पेस ऑर्बिट में पहुंचाया। इससे आने वाले कुछ सालों में भारत में हाई स्पीड इंटरनेट की शुरुआत होगी। इसरो ने कहा कि आने वाले वक्त में नए जीएसएलवी रॉकेट से इंसानों को स्पेस की सैर कराई जा सकती है। इस ऐतिहासिक मिशन की कामयाबी पर नरेंद्र मोदी और प्रेसिडेंट प्रणब मुखर्जी ने इसरो को बधाई दी।

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 क्या है ये मिशन?
– इसरो के सबसे ताकतवर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल GSLV मार्क 3 डी-1 ने पहली उड़ान भरी। यह अपने साथ देश के सबसे भारी कम्युनिकेशन सैटेलाइट GSAT-19 (वजन 3136 kg ) को स्पेस में लेकर गया।
 क्या है GSAT-19?
– GSAT-19 देश में तैयार सबसे वजनी सैटेलाइट है। इसमें मॉडर्न प्लेन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया गया है। यह हीट पाइप, फाइबर ऑप्टिक जायरो, माइक्रो-मेकैनिकल सिस्टम्स एक्सीलेरोमीटर, केयू-बैंड टीटीसी ट्रांसपोंडर और लीथियम आयन बैटरी से लैस है। इस पर करीब 300 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं।
कम्युनिकेशन सैटेलाइट से क्या फायदा?
– कुछ साल में देश में इंटरनेट स्पीड बढ़ेगी। सबसे तेज लाइव स्ट्रीमिंग मिलेगी। जहां फाइबर ऑप्टिकल नेटवर्क नहीं है, वहां फायदा होगा।
– GSAT-19 और GSAT-11 कम्युनिकेशन सैटेलाइट्स की लॉन्चिंग से डिजिटल इंडिया को मजबूती मिलेगी।
 क्या है GSLV?
– GSLV इसरो का सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल है। जिसका पूरा नाम जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल है। इस रॉकेट को इसरो ने डेवलप किया है। इसके जरिए 2001 से अब तक 11 बार सैटेलाइट स्पेस में भेजे जा चुके हैं। आखिरी उड़ान 5 मई, 2017 को भरी थी, तब यह जीसैट-9 को अपने साथ लेकर रवाना हुआ था।

 

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GSLV मार्क 3 की खासियत क्या है?
– GSLV मार्क 3 की लॉन्चिंग को स्पेस टेक्नोलॉजी में बड़ा बदलाव लाने वाले मिशन के तौर पर देखा जा रहा है। अब भारत दूसरे देशों पर डिपेंड हुए बिना बड़े और भारी सैटेलाइट्स की लॉन्चिंग देश में ही कर सकेगा। यह स्पेस में 4 टन तक के वजन वाले सैटेलाइट्स को ले जा सकता है। इसकी क्षमता मौजूदा जीएसएलवी मार्क 2 की दो टन की क्षमता से दोगुना है।
– धरती की कम ऊंचाई वाली ऑर्बिट तक 8 टन वजन ले जाने की ताकत रखता है। जो भारत के क्रू को लेकर जाने के लिए लिहाज से काफी है। इसरो पहले ही स्पेस में 2 से 3 मेंबर भेजने का प्लान बना चुका है। इसके लिए करीब 4 अरब डॉलर के फंड मिलने का इंतजार है।

 इसे क्यों कहा जा रहा है फैट बॉय सैटेलाइट?
– GSLV मार्क 3 का वजन 630 टन है, जो 200 हाथियों (एक हाथी-करीब 3 टन) के बराबर है। ऊंचाई करीब 42 मीटर है। इसका वजन 5 पूरी तरह से भरे बोइंग जम्बो विमान या 200 हाथियों के बराबर है। इसीलिए इसे फैट ब्वॉय सैटेलाइट कहा जा रहा है। इसको बनाने में 160 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं।
 रॉकेट लॉन्चिंग में इसरो का क्या रिकॉर्ड?
– इसरो के लिए यह मिशन आसान काम नहीं होगा। पहले रॉकेट लॉन्च में भारत का रिकॉर्ड कुछ खास अच्छा नहीं रहा है। 1993 में इसरो का PSLV पहले लॉन्च में फेल हो गया था। तब से अब तक इसके 39 लॉन्च कामयाब रहे हैं।
– GSLV Mk-1 भी 2001 में अपने पहले लॉन्च में असफल हो गया था। तब से लेकर अब तक उससे 11 लॉन्च हुए हैं जिसमें से आधे कामयाब रहे हैं।
 इससे भारत को क्या फायदा मिलेगा?
– GSLV मार्क 3 की पहली उड़ान कामयाबी होने से स्पेस में इंसान को भेजने का भारत का सपना जल्द पूरा हो सकता है। इसरो का यह जम्बो रॉकेट इंसानों को स्पेस में लेकर जाने की कैपेसिटी रखता है। इसरो के चेयमैन एएस. किरण कुमार ने कहा था कि अगर 10 साल या कम से कम 6 कामयाब लॉन्चिंग में सबकुछ ठीक रहा तो इस रॉकेट को ‘धरती से भारतीयों को स्पेस में पहुंचाने वाले’ सबसे अच्छे ऑप्शन के तौर पर इस्तेमाल कर सकते हैं।
 भारत से पहला अंतरिक्ष यात्री कौन था?
– स्पेस में जाने वाले भारत के पहले शख्स का नाम राकेश शर्मा है। जिन्होंने 2 अप्रैल 1984 को सोवियत यूनियन के मिशन के दौरान उड़ान भरी थी। शर्मा इंडियन एयरफोर्स के पायलट थे।
 कितने देशों के पास यह कैपेसिटी?
– GSLV मार्क 3 की कामयाबी के साथ भारत, रूस, अमेरिका और चीन के बाद ह्यूमन स्पेस फ्लाइट प्रोग्राम वाला दुनिया का चौथा देश बनने के और करीब पहुंच जाएगा।
स्पेस इंडस्ट्री में भारत कैसे आगे निकला?
– रिकॉर्ड सैटैलाइट छोड़े। इसरो जो सैटेलाइट तैयार करता है, उसकी लागत कम होती है। इस वजह से वह ग्लोबल स्पेस इंडस्ट्री में आगे निकल रहा है। किसी हॉलीवुड मूवी की लागत से कम खर्च में भारत ने मंगल पर अपना मिशन भेज दिया था। इसरो कई करोड़ डॉलर के स्पेस लॉन्चिंग मार्केट में पकड़ मजबूत कर चुका है।
GSAT-11 को भी इसी साल छोड़ा जाएगा
– इसरो के चेयरमैन किरण कुमार ने बताया कि GSAT-19 के बाद GSAT-11 को भी छोड़ा जाएगा। ये दो सैटेलाइट गेम चेंजर माने जा रहे हैं। कम्युनिकेशन में ये क्रांतिकारी बदलाव होगा। इनकी लॉन्चिंग डिजिटल इंडिया की दिशा में बेहद अहम कदम होगा। ये हाई स्पीड इंटरनेट सर्विस मुहैया कराने के साथ ही कम्युनिकेशन को असरदार बनाने में अहम रोल निभाएंगे।
– स्पेस एप्लिकेशन सेंटर, अहमदाबाद के डायरेक्टर तपन मिश्रा ने बताया कि अगर यह लॉन्चिंग सफल रही तो अकेला GSAT-19 सैटेलाइट स्पेस में पहले से मौजूद पुराने किस्म के 6-7 कम्युनिकेश सैटेलाइट के ग्रुप के बराबर होगा। आज स्पेस में मौजूद 41 भारतीय सैटेलाइट्स में से 13 कम्युनिकेशन सैटेलाइट हैं।
– मिश्रा के मुताबिक, इसे साल के आखिर में GSAT-11 छोड़ा जाएगा। इन दोनों सैटेलाइट के काम शुरू करते ही हाई-क्वालिटी इंटरनेट, फोन और वीडियो सर्विस मिलनी शुरू हो जाएगी। स्पेस में पहले से मौजूद GSAT सैटेलाइट्स का प्रभावी डाटा रेट एक गीगाबाइट प्रति सेकंड है, जबकि GSAT-19 प्रति सेकंड 4 गीगाबाइट डाटा और GSAT-11 तेरह गीगाबाइट प्रति सेकंड की दर से डाटा ट्रांसफर करने के काबिल है।

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